वसंत पंचमी वाले दिन की रोचक जानकारियां

एनटी न्यूज / लखनऊ डेस्क / योगेश मिश्र

बसंत पंचमी का पर्व पूर्वाह्न व्यापिनी माघ शुक्ल पंचमी को किया जाता है. यदि यह तिथि दो दिन पूर्वाह्न व्यापिनी उपलब्ध हो तो चतुर्थी विद्या पंचमी वाले दिन ही करना चाहिये.

वसंत पंचमी के बारे में कुछ खास जानकारी

वसंत ऋतु आते ही प्रकृति का कण-कण खिल उठता है. मानव तो क्या पशु-पक्षी तक उल्लास से भर जाते हैं. हर दिन नयी उमंग से सूर्योदय होता है और नयी चेतना प्रदान कर अगले दिन फिर आने का आश्वासन देकर चला जाता है. यूं तो माघ का यह पूरा मास ही उत्साह देने वाला है, लेकिन वसंत पंचमी (माघ शुक्ल पंचमी) का पर्व भारतीय जनजीवन को अनेक तरह से प्रभावित करता है. प्राचीनकाल से इसे ज्ञान और कला की देवी मां सरस्वती का जन्मदिवस माना जाता है.

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जो शिक्षाविद भारत और भारतीयता से प्रेम करते हैं, वो इस दिन मां शारदा की पूजा कर उनसे और अधिक ज्ञानवान होने की प्रार्थना करते हैं. कलाकारों का तो कहना ही क्या? जो महत्व सैनिकों के लिए अपने शस्त्रों और विजयादशमी का है, जो विद्वानों के लिए अपनी पुस्तकों और व्यास पूर्णिमा का है, जो व्यापारियों के लिए अपने तराजू, बाट, बहीखातों और दीपावली का है, वही महत्व कलाकारों के लिए वसंत पंचमी का है. चाहे वे कवि हों या लेखक, गायक हों या वादक, नाटककार हों या नृत्यकार, सब दिन का प्रारम्भ अपने उपकरणों की पूजा और मां सरस्वती की वंदना से करते हैं.

वसंत पंचमी का ऐतिहासिक महत्व

वसंत पंचमी का दिन हमें पृथ्वीराज चौहान की भी याद दिलाता है. उन्होंने विदेशी हमलावर मोहम्मद गौरी को 16 बार पराजित किया और उदारता दिखाते हुए हर बार जीवित छोड़ दिया, पर जब सत्रहवीं बार वे पराजित हुए, तो मोहम्मद गौरी ने उन्हें नहीं छोड़ा. वह उन्हें अपने साथ अफगानिस्तान ले गया और उनकी आंखें फोड़ दीं.

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इसके बाद की घटना तो जगप्रसिद्ध ही है. गौरी ने मृत्युदंड देने से पूर्व उनके शब्दभेदी बाण का कमाल देखना चाहा. पृथ्वीराज के साथी कवि चंदबरदाई के परामर्श पर गौरी ने ऊंचे स्थान पर बैठकर तवे पर चोट मारकर संकेत किया. तभी चंदबरदाई ने पृथ्वीराज को संदेश दिया.

“चार बांस चौबीस गज, अंगुल अष्ट प्रमाण। ता ऊपर सुल्तान है, मत चूको चौहान।।”

पृथ्वीराज चौहान ने इस बार भूल नहीं की. उन्होंने तवे पर हुई चोट और चंदबरदाई के संकेत से अनुमान लगाकर जो बाण मारा और वह बाण गौरी के सीने में जा धंसा. इसके बाद चंदबरदाई और पृथ्वीराज ने एक-दूसरे के पेट में छुरा घोंपकर आत्मबलिदान दे दिया. (1192 ई) यह घटना भी वसंत पंचमी वाले दिन ही हुई थी.

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दूसरा ऐतिहासिक महत्व…

वसंत पंचमी का गहरा संबंध लाहौर निवासी वीर हकीकत से भी है. एक दिन जब मुल्ला जी किसी काम से विद्यालय छोड़कर चले गये, तो सब बच्चे खेलने लगे, पर वह पढ़ता रहा. जब अन्य बच्चों ने उसे छेड़ा, तो दुर्गा मां की सौगंध दी. मुस्लिम बालकों ने दुर्गा मां की हंसी उड़ाई. हकीकत ने कहा कि यदि में तुम्हारी बीवी फातिमा के बारे में कुछ कहूं, तो तुम्हें कैसा लगेगा?

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बस फिर क्या था, मुल्ला जी के आते ही उन शरारती छात्रों ने शिकायत कर दी कि इसने बीवी फातिमा को गाली दी है. फिर तो बात बढ़ते हुए काजी तक जा पहुंची. मुस्लिम शासन में वही निर्णय हुआ, जिसकी अपेक्षा थी. आदेश हो गया कि हकीकत मुसलमान बन जाये अन्यथा उसे मृत्युदंड दिया जायेगा. हकीकत ने यह स्वीकार नहीं किया. परिणामत: उसे तलवार के घाट उतारने का फरमान जारी हो गया.

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कहते हैं उसके भोले मुख को देखकर जल्लाद के हाथ से तलवार गिर गयी. हकीकत ने तलवार उठाकर उसके हाथ में दी और कहा कि जब मैं बच्चा होकर अपने धर्म का पालन कर रहा हूं, तो तुम बड़े होकर अपने धर्म से क्यों विमुख हो रहे हो? इस पर जल्लाद ने दिल मजबूत कर तलवार चला दी लेकिन हकीकत का शीश धरती पर नहीं गिरा. वह आकाशमार्ग से सीधा स्वर्ग चला गया. यह घटना वसंत पंचमी (23.2.1734) को ही हुई थी। पाकिस्तान यद्यपि मुस्लिम देश है, पर हकीकत के आकाशगामी शीश की याद में वहां वसंत पंचमी पर पतंगें उड़ाई जाती हैं. हकीकत लाहौर का निवासी था. अत: पतंगबाजी का सर्वाधिक जोर लाहौर में रहता है.

एक अन्य ऐतिहासिक महत्व

वसंत पंचमी हमें गुरु रामसिंह कूका की भी याद दिलाती है. उनका जन्म 1816 ई. में वसंत पंचमी पर लुधियाना के भैणी ग्राम में हुआ था. कुछ समय वे रणजीत सिंह की सेना में रहे, फिर घर आकर खेतीबाड़ी में लग गये, पर आध्यात्मिक प्रवृत्ति होने के कारण ये गृह कार्यों के अलावा प्रवचन भी देते थे. इनके प्रवचन सुनने लोग आने लगे. धीरे-धीरे इनके शिष्यों का एक अलग पंथ ही बन गया, जो कूका पंथ कहलाया.

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गुरु रामसिंह गोरक्षा, स्वदेशी, नारी उद्धार, अंतरजातीय विवाह, सामूहिक विवाह आदि पर बहुत जोर देते थे. उन्होंने भी सर्वप्रथम अंग्रेजी शासन का बहिष्कार कर अपनी स्वतंत्र डाक और प्रशासन व्यवस्था चलायी थी. प्रतिवर्ष मकर संक्रांति पर भैणी गांव में मेला लगता था. 1872 में मेले में आते समय उनके एक शिष्य को मुसलमानों ने घेर लिया. उन्होंने उसे पीटा और गोवध कर उसके मुंह में गोमांस ठूंस दिया. यह सुनकर गुरु रामसिंह के शिष्य भड़क गये. उन्होंने उस गांव पर हमला बोल दिया, पर दूसरी ओर से अंग्रेज सेना आ गयी. अत: युध्द का पांसा पलट गया.

इस संघर्ष में अनेक कूका वीर शहीद हुए और 68 पकड़ लिये गये. इनमें से 50 को सत्रह जनवरी 1872 को मलेरकोटला में तोप के सामने खड़ाकर उड़ा दिया गया. शेष 18 को अगले दिन फांसी दी गयी. दो दिन बाद गुरु रामसिंह को भी पकड़कर बर्मा की मांडले जेल में भेज दिया गया. 14 साल तक वहां कठोर अत्याचार सहकर 1885 ई. में उन्होंने अपना शरीर त्याग दिया.

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ज्योतिष एवं वास्तु विशेषज्ञ डॉ उमाशंकर मिश्र, सिद्धिविनायक ज्योतिष एवं वास्तु अनुसंधान केंद्र, विभव खंड, गोमती नगर, नियर पीपल वाला चौराहा एवं हनुमान टेकरी मंदिर में 10 फरवरी 2019 को पूर्वी भारत में वसंतपंचमी का पावन त्यौहार मनाया जायेगा.

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