एनटी न्यूज़ डेस्क/ रपट/ योगेन्द्र त्रिपाठी
सरकार के जब सारे दावे धराशायी हो जाते हैं तो असमानता जन्म लेती है. वह असमानता आर्थिक, धार्मिक, जातीय, मौद्रिक, जन्संख्कनात्मक या किसी और मायने में हो सकती है. सरकार का काम महज योजनाओं को बड़े-बड़े समारोहों के जरिए जनता को बताना ही नहीं होता बल्कि उसे यथावत या सुधारवादी नीतियों के साथ जमीन पर लागू करना भी होता है. ऑक्सफेम की एक रपट आई है, जो सरकार के उन सभी दावों को औंधे-मुंह गिराती है, जिसमें यह कहा जाता है कि विकास पर सभी का बराबर हक है और यह देश के अंतिम व्यक्ति तक पहुंचनी चाहिए.
क्या कहती है रपट…?
ग़ैर सरकारी संगठन ऑक्सफेम ने बीते गुरुवार को जारी किए एक रपट में कहा कि भारत में आर्थिक असमानता बीते तीन दशकों से बढ़ रही है. ग़रीब और ग़रीब होते जा रहे हैं.
इस रिपोर्ट के अनुसार, आज हालत यह है कि देश के कुल सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का 15 प्रतिशत हिस्सा भारतीय अरबपतियों के खाते में है. पांच साल पहले इन अरबपतियों के पास महज 10 प्रतिशत हिस्सा ही था.
‘द वाइडेनिंग गैप्स: इंडिया इनइक्वैलिटी रिपोर्ट 2018’
ऑक्सफेम द्वारा जारी इस रपट का नाम ‘द वाइडेनिंग गैप्स: इंडिया इनइक्वैलिटी रिपोर्ट 2018’ है. इसमें बात की गयी है कि आय, उपभोग और धन के मानकों पर भारत विश्व के असमान स्थिति वाले देशों में शुमार है और इन हालातों के लिए सरकारों की असंतुलित नीतियों को ज़िम्मेदार बताया गया है.
इस रपट में कहा गया है कि भारत में धनाढ्यों ने देश में सृजित संपत्ति का एक बड़ा हिस्सा ‘सांठ-गांठ वाले पूंजीवाद’ या ‘बपौती’ में हासिल किया है. वहीं आय पिरामिड के नीचे के तबके का आय में हिस्सा लगातार कम होता जा रहा है.
ऑक्सफेम इंडिया की सीईओ निशा अग्रवाल ने कहा ने इस रपट को जारी करते हुए कहा कि ये असमानताएं 1991 के बहुप्रचारित उदारीकरण के दौरान अपनाए गए सुधार पैकेजों तथा उसके बाद अपनाई गई नीतियों का परिणाम हैं.
इस रपट के अनुसार बीते साल 2017 में भारत में 101 अरबपति थे, जिनकी हैसियत 65 अरब रुपये या उससे अधिक है.
क्या कहते हैं इस रपट के लेखक
इस रपट के लेखक प्रो. हिमांशु का कहना है, ‘जाति, धर्म, क्षेत्रीयता और लिंग के आधार पर बंटे भारत के संदर्भ में आर्थिक असमानता और अधिक चिंतित करने वाली है.’
इसमें कहा गया है कि देश में बढ़ते विकास के दौर में आर्थिक असमानता को रोका जा सकता है. लैटिन अमेरिका और पूर्व एशियाई देशों में आर्थिक असमानता कम हुई है और लगातार घट रही है.
जबकि भारत उन देशों की कतार में खड़ा है, जहां आर्थिक असमानता पहले से बढ़ी हुई है तथा जो और तेज़ी से बढ़ रही है. यह बेहद ही चिंताजनक है.
इस रपट में कहा गया है कि यह अचानक से नहीं हो रहा है. श्रम की जगह पूंजी को समर्थन देने वाली विशिष्ट नीतियों और अकुशल श्रम की जगह कुशल श्रम को बढ़ावा देने वाली नीतियों के चुनाव भारत में इस विकास के लिए ज़िम्मेदार है.
क्या कहती हैं रपट पर निशा अग्रवाल
ऑक्सफेम इंडिया की सीईओ निशा अग्रवाल ने कहा, ‘धन और विरासत कर’ लागू कर विकास की इस धारा को बदला जा सकता है और उस कर का इस्तेमात ग़रीबों के स्वास्थ्य, शिक्षा और पोषण पर किया जाए. ख़ासकार ग़रीब बच्चों के विकास को ध्यान में रखते हुए इस कर को ख़र्च किया जाए.
अग्रवाल ने कहा कि ऐसा करके ही और अधिक समान अवसर वाला देश बनाने की कल्पना की जा सकती है.
एक और रपट हुई थी जारी
बीते जनवरी महीने में दावोस में विश्व आर्थिक मंच की बैठक से ठीक पहले ऑक्सफेम इंडिया ने एक और रिपोर्ट जारी की थी.
उस रपट में कहा गया था कि भारत में 2017 में कुल संपत्ति के सृजन का 73 प्रतिशत हिस्सा केवल एक प्रतिशत अमीर लोगों के हाथों में है.
सर्वेक्षण में भारत की आय में असामनता की चिंताजनक तस्वीर पेश की गई थी.
भारत के संबंध में इसमें कहा गया है कि पिछले साल 17 नए अरबपति बने है. इसके साथ अरबपतियों की संख्या 101 हो गई है. 67 करोड़ भारतीयों की संपत्ति में सिर्फ एक प्रतिशत की वृद्धि हुई है.
रिपोर्ट के अनुसार, 2017 में भारतीय अमीरों की संपत्ति 4.89 लाख करोड़ बढ़कर 20.7 लाख करोड़ रुपये हो गई है. यह 4.89 लाख करोड़ कई राज्यों के शिक्षा और स्वास्थ्य बजट का 85 प्रतिशत है.