एनटी न्यूज़ डेस्क/ अयोध्या विवाद
अयोध्या में राम जन्मभूमि पर मालिकाना हक के मुकदमे में पहले मस्जिद पर बहस होगी. सुप्रीम कोर्ट विचार करेगा कि नमाज के लिए मस्जिद को इस्लाम का जरूरी हिस्सा नहीं बताने वाले इसी अदालत के फैसले पर पुनर्विचार की जरूरत है कि नहीं. मुस्लिम पक्षकारों ने मामले को पुनर्विचार के लिए बड़ी पीठ को भेजने की मांग की है.
पहले कहा था नहीं है कोई जरुरत…
सुप्रीम कोर्ट की पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने 1994 में अयोध्या में भूमि अधिग्रहण को चुनौती देने वाले डाक्टर एम इस्माइल फारुकी के मामले में 3-2 के बहुमत से फैसला सुनाया था.
इसमें अदालत ने कहा था कि नमाज के लिए मस्जिद इस्लाम का अभिन्न हिस्सा नहीं है. मुसलमान कहीं भी नमाज अदा कर सकते हैं. यहां तक कि खुले में भी नमाज अदा की जा सकती है. मुस्लिम पक्षकार एम सिद्दीकी के वकील राजीव धवन ने गत 5 दिसंबर को इस पर सवाल उठाते मामला पुनर्विचार के लिए बड़ी पीठ को भेजने की मांग की थी.
फैसले पर पुनर्विचार की मांग पर होगी सुनवाई
बुधवार को मुख्य न्यायाधीश जस्टिस दीपक मिश्र, अशोक भूषण और एस अब्दुल नजीर की पीठ ने अयोध्या विवाद पर सुनवाई शुरू करते हुए कहा कि वह पहले फारुकी मामले में फैसले पर पुनर्विचार की मांग पर सुनवाई करेगा.
राजीव धवन पहले कोर्ट को संतुष्ट करें कि फैसला संवैधानिक प्रावधानों के खिलाफ है और उस पर पुनर्विचार की जरूरत है. अगर कोर्ट को जरूरी लगा तो इसे पुनर्विचार के लिए बड़ी पीठ को भेजा जा सकता है.
इसके बाद धवन ने उस फैसले को गलत ठहराने वाली दलीलें देनी शुरू की.
कोर्ट तय करे, मस्जिद का क्या मतलब है?
मुस्लिम पक्षकार के वकील राजीव धवन ने कहा कि कोर्ट पहले तय करे कि मस्जिद का क्या मतलब है? फारुकी मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि मुसलमान कहीं भी नमाज पढ़ सकते हैं.
कोर्ट ने कहा कि इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि वहां मस्जिद है कि नहीं. तो क्या इसे यह कहा जाएगा कि मस्जिद धर्म का जरूरी हिस्सा नहीं है. सरकार किसी भी जमीन का अधिग्रहण कर सकती है.
इस मामले पर बोलते हुए कोर्ट ने कहा, ‘लेकिन, उससे वहां प्रार्थना करने का अधिकार खत्म नहीं होता. यह फैसला मुस्लिमों को संविधान के अनुच्छेद 25 से मिले मौलिक अधिकार का हनन करती है. यह कैसे कहा जा सकता है कि फलां मस्जिद महत्वपूर्ण है और फलां नहीं.‘
कोर्ट ने कहा कि विवादास्पद ढांचा ढहने के बावजूद कानून की निगाह में उसका मस्जिद होना खत्म नहीं होता. मामले पर 23 मार्च को फिर सुनवाई होगी.
हस्तक्षेप अर्जियां खारिज
सुप्रीम कोर्ट ने जन्मभूमि मामले में पक्ष रखने का हक मांगने वाली सभी हस्तक्षेप अर्जियां और मामले में सुलह के बिंदु पेश करने का दावा करने वालों की मांग ठुकरा दी हैं.
कोर्ट ने इस सिलसिले में सभी अर्जियों को खारिज कर दिया है.
कोर्ट नहीं कह सकता सुलह के लिए
सर्वोच्च न्यायालय ने साफ किया कि वह इस मामले में कोर्ट से बाहर सुलह के लिए किसी को नियुक्त नहीं कर रहा. ऐसे मामले में कोर्ट सुलह के लिए किसी को कैसे कह सकता है.
हालांकि, कोई समझौता वार्ता कर रहा है तो कोर्ट उसे रोक भी नहीं रहा.