अगर आपको सुरक्षा और संघर्ष में से चुनाव करने को कहा जाए तो किसे चुनेंगे…?

अक्सर लोग लंबे समय तक अपने उसूलों पर टिके रहने से बहुत घबरा जाते हैं. कई बार ऐसा करना उनके लिए बेहद असुविधाजनक और तकलीफदेह भी साबित होता है. ये याद रखना बहुत जरूरी है कि जब तक लोग उसूलों की बजाय अपनी सुख-सुविधाओं को ज्यादा अहमियत देते रहेंगे तब तक ये समाज भी आगे नहीं बढ़ पाएगा.

जो लोग किसी भी बात पर अपना पक्ष जाहिर करने से डरते और घबराते रहते हैं, वे दरअसल हमेशा सुरक्षित चाल चलने के मौके तलाशते हैं. फिर मौका आने पर वे अपनी बात बहुत ही आसानी से पलट भी देते हैं और इस तरह सबकी नजरों में अपनी विश्वसनीयता लगातार खोते चले जाते हैं. जैसा कि किंग मार्टिन लूथर ने कहा है कि यदि एक इंसान ने ऐसा कोई भी मकसद नहीं खोजा है जिसके लिए वह मरने के लिए भी तैयार है, तो उसे जिंदा रहने का कोई हक नहीं है.
बेहद असुविधाजनक, तकलीफदेह, उसूल, घबराहट

ये भी पाया गया है कि कुछ लोग जिम्मेदारी को इसलिए स्वीकार नहीं करते क्योंकि उनके साथ उत्तरदायित्व भी जुड़े रहते हैं. वे हर चीज के लिए, हर बात के लिए दुनिया को दोषी ठहराते हैं, खुद बचना चाहते हैं. ऐसे लोग संघर्ष की बजाय सुरक्षा पसंद करते हैं. दरअसल वे खुद को कमजोर समझने लगते हैं इसलिए उनके लिए चुनौतियां भी बहुत कठोर और बड़ी हो जाती हैं. वे अपनी बेचारगी को इसलिए बड़ी आसानी के साथ कबूल कर लेते हैं क्योंकि वे किसी भी तरह के बदलाव से बहुत डरते हैं.

उसूलों पर टिके रहने का ये अर्थ होता है कि आप किसी मामले के पक्ष में या विपक्ष में एक मजबूत स्थिति बना लेते हैं और उसी पर हमेशा कायम भी रहते हैं. इतिहास बताता है कि जब कभी महान नेता उसूलों पर टिके रहे हैं तो उन्होंने उसके आड़े आने वाले सभी दुख-तकलीफों को हंसते हुए कबूल किया है और खुशी से सहा भी है. लेकिन बनावटी और झूठी प्रसिद्धि हासिल करने के लिए जो लोग अपने उसूलों, सिद्धांतों, सच्चाई और ईमानदारी को ही त्याग देते हैं, वे दरअसल खोखली शोहरत को सच्ची प्रतिष्ठा से ज्यादा अहमियत देने लगते हैं.

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