अम्बेडकर को देश की नहीं, बल्कि दलितों की फ़िक्र थी. -चुप रहो!

एनटी न्यूज़डेस्क/लखनऊ

-धत्त! गांधी तो दलित-विरोधी थे! उन्होंने अछूतों,पिछड़ों,दलितों के लिए अलग निर्वाचक मंडल की मुख़ालिफ़त की थी. -अम्बेडकर को देश की नहीं, बल्कि दलितों की फ़िक्र थी. -चुप रहो!

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साधु जैसा भेष बनाकर कुछ नहीं होता. -अम्बेडकर ने कोट-पैंट पहनकर ही क्या कर लिया? आए दिन यह बातें आम अफ़राद में सुनी जा सकती हैं. इसमें कोई दोराय नहीं है कि अम्बेडकर और गांधी में मतभेद थे. अम्बेडकर ने पानी पी-पीकर गांधी के मतों व विचारों को कोसा है. लेकिन मत भूलिए! सन 1954 में अम्बेडकर ने नमक पर टैक्स लगाने की सलाह दी और वह चाहते थे कि जमा राशि से दलितों के उत्थान के लिए काम किया जाए. पता है इस योजना को उन्होंने क्या नाम दिया? पता है? नहीं पता है, कहाँ पता है?

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अम्बेडकर ने इसे नाम दिया “गांधी निधि”. जी हाँ! गांधी निधि. अम्बेडकर गांधी से हमेशा एक प्रतिद्वंदी की हैसियत से मिलते थे और यही कारण है कि वह गांधी को बाकियों से बेहतर जानते थे. गांधी को पिछड़ी जाति के लोग जान से भी प्यारे थे. इतिहासकार रामचन्द्र गुहा ने कहा कि वर्तमान परिस्थितियों और समय की मांग है कि गांधी और अम्बेडकर को साथ ले आया जाए. लेकिन गांधी और अम्बेडकर एक दूसरे से अलग थे ही कब? वे तो एक-दूसरे के फैक्टिटिव यानी पूरक हैं! गांधी और अम्बेडकर, दोनों ने ही अपने ज्ञान और आंदोलनों से मुल्क़ के लोकतंत्र को बोया और सींचा है.

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तत्कालीन ब्रिटिश प्रधानमंत्री रैमसे मैकडोनाल्ड ने अछूतों के लिए अलग निर्वाचक मंडल की घोषणा की. गांधी उस वक़्त पूना की यरवदा जेल में बन्द थे. उन्होंने इसका पुरजोर विरोध किया और कहा कि इससे हिन्दू समाज में तक़सीम पैदा होगी. गांधी जातियों में सुधार चाहते थे, जबकि अम्बेडकर जाति व्यवस्था को ही नेस्तनाबूद कर देना चाहते थे! जब बाबू जगजीवन राम गांधी से संविधान के विषय में उनके सुझाव लेने पहुंचे तो बापू ने उन्हें कहा कि जो भी कार्य तुम कर रहे हो, सोचो कि क्या उससे समाज के अंतिम व्यक्ति को फ़ायदा मिल रहा है? ग़रीब-दुर्बल-भूखे-दरिद्र व्यक्ति को क्या इससे स्वराज्य प्राप्ति होगी? यदि हाँ तो बेझिझक वह कार्य करो. यह सुनकर बाबू जगजीवन राम की आँखें भर आईं.

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गांधी व अम्बेडकर माँ भारती के दो लाल थे. दोनों ने ही खूब पढ़ा, लिखा, बोला और समाज में जागृति पैदा की. मुल्क़ की तरक्की में दोनों के अपने-अपने योगदान हैं. किसी भी फेसबुकिया-व्हाट्सअपिया-ट्विटरिया ज्ञान से बचिए. नेताओं के बयानों से अम्बेडकर-गांधी के कद को मत आंकिए. अम्बेडकर के तथाकथित अनुयायियों ने उनके विचारों का उतना ही दोहन किया है, जितना कि गांधी का हुआ है. इस अंधेरी सुरंग में जो दूर से टिमटिमाती हुई एक रोशनी दीख रही है न! ध्यान से देखिए अम्बेडकर और गांधी साथ में चले आ रहे हैं. थोड़ा-सा आप भी आगे बढ़िए. इस यकीन के साथ कि बड़ा परिवर्तन होगा क्योंकि ये लोग मसाईबों में भी बसीरत रखते हैं!

आयुष चतुर्वेदी (यह लेखक के निजी विचार हैं )

 

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