एनटी न्यूज़ डेस्क/ आरक्षण
केंद्र सरकार भले ही दलितों, पिछड़ों और आदिवासियों के उत्थान को पहली प्राथमिकता में गिनाती हो, लेकिन स्वायत्त संस्था मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया (एमसीआई) निजी मेडिकल कॉलेजों में अनुसूचित जाति-जनजाति (एससी-एसटी) और पिछड़े छात्रों को मिल रहे आरक्षण को खत्म करने पर अड़ी है. यहां तक कि एमसीआई ने स्वास्थ्य मंत्रालय की ओर से मेडिकल कॉलेजों में नामांकन के लिए प्रस्तावित सुधारों को अधिसूचित करने से मना कर दिया है.
कई संशोधनों का प्रस्ताव किया गया था
उच्च पदस्थ लोगों से आ रही ख़बरों के अनुसार, स्वास्थ्य मंत्रालय ने देश में मेडिकल शिक्षा को सुचारू बनाने के लिए कई संशोधनों का प्रस्ताव किया था, लेकिन एमसीआई ने इन सुधारों के साथ-साथ अभी तक चले आ रहे निजी मेडिकल कॉलेजों में राज्य सरकारों के लिए तय 50 फीसद कोटे को समाप्त करने की शर्त जोड़ दी.
मालूम हो कि निजी मेडिकल कॉलेजों में मिलने वाली सीटों में से राज्य सरकारें एससी, एसटी और पिछड़ी जाति के छात्रों को आरक्षण भी देती हैं, जबकि निजी मेडिकल कॉलेजों की सामान्य 50 फीसद सीटों पर आरक्षण का लाभ नहीं दिया जाता.
स्वास्थ्य मंत्रालय ने एमसीआई को साफ किया कि राज्यों की 50 फीसद सीटें खत्म होने के बाद उनमें मिलने वाले आरक्षण के लाभ से एससी, एसटी और पिछड़े वर्ग के छात्र वंचित रह जाएंगे.
कई दौर की वार्ता हो चुकी है
स्वास्थ्य मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि इस मामले में एमसीआई के साथ कई दौर की वार्ता हो चुकी है, लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला.
पहले तो एमसीआई ने इस मुद्दे को कई बहानों से टालने की कोशिश की. अदालत के फैसले का हवाला देकर भी राज्यों का 50 फीसद कोटा खत्म करने की मांग की, लेकिन जब अदालती आदेश की जांच की गई तो पता चला कि वह सिर्फ एक-दो कॉलेजों से संबंधित था.
अब एमसीआई ने साफ कर दिया है कि निजी कॉलेजों में राज्यों के 50 फीसद कोटे का प्रावधान हटाए बिना वह मेडिकल शिक्षा में अन्य संशोधनों को अधिसूचित नहीं करेगा. एमसीआई के इस रुख के साथ स्वास्थ्य मंत्रालय और इस लिहाज से सरकार का सिरदर्द बढ़ सकता है.