राकेश उपाध्याय ( वरिष्ठ पत्रकार)
प्रवर्तन निदेशालय यानी ईडी को खुले हाथ मिलने का असर आंकड़ों में साफ है। 2005 से 2012 तक के सात साल में ईडी ने भ्रष्टाचार से जुड़े मामलों में रसूखदार लोगों की काली कमाई के केवल 1200 करोड़ रुपये की संपत्ति जब्त की। सात साल में सिर्फ 1200 करोड़।
2012 में सु्प्रीम कोर्ट ने कई मामलों को हाथ में लिया तो ईडी ने 2012 से मई 2014 के बीच के दो साल में करीब 2500 करोड़ रुपये की संपत्ति जब्त की। यानी दो साल में सिर्फ 2500 करोड़।
लेकिन 2014 से 2018 के चार साल में ईडी की कार्यवाही में जबर्दस्त इजाफा हुआ है। अकेले 2014 में मई से दिसंबर महीने में ही 1500 करोड़ की काली कमाई व संपत्ति जब्त हुई। केवल पहले 8 महीने में 1500 करोड़।
2015 से मार्च 2018 के मध्य ही ईडी करीब 23 हजार करोड़ रुपये से ऊपर की काली कमाई और संपत्ति जब्त कर चुकी है। यानी तीन साल में 23000 करोड़ की काली कमाई जब्त। मार्च 2018 से मार्च 2019 के जब्ती का आंकड़े मार्च में आएंगे तब यह आंकड़ा 50 हजार करोड़ के पार जाएगा क्योंकि मेहुल चौकसी, माल्या और नीरव समेत तमाम भगोडों की संपत्ति भी जब्त हो चुकी है।
मोदी सरकार के कार्यकाल में ईडी साल दर साल दिन दूना चार गुना की गति से अवैध कमाई जब्त कर रही है। इसका संकेत यही है कि प्रवर्तन निदेशालय को अपने काम-काज में पूरी स्वतंत्रता दी गई है।
इसी का परिणाम है कि यूपीए के जमाने में ईडी हाथी दांत थी, वहीं अब वो शेर की उस मांद में तब्दील हो चुकी है जहां से निकल पाना बड़ा मुश्किल…किसी के लिए भी। सचमुच देश बदल रहा है, आगे बढ़ रहा है।