अयोध्या पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट में वरिष्ठ वकील राजीव धवन ने किया भारी हंगामा

अयोध्या राम जन्मभूमि विवाद मामले में शुक्रवार को एक बार फिर कोर्ट में भारी हंगामा हुआ. अयोध्या विवाद पर बहस करते हुए वरिष्ठ वकील राजीव धवन ने सुनवाई कर रही पीठ से सवाल किया कि मुसलमानों में प्रचलित बहुविवाह ज्यादा महत्वपूर्ण मामला है या अयोध्या? कुछ दिन पहले कोर्ट ने बहुविवाह को महत्वपूर्ण मामला मानते हुए संविधान पीठ के पास भेजा है. वही मानदंड अपनाते हुए इसे भी संविधान पीठ के पास भेजा जाए.

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अड़े रहे वरिष्ठ वकील राजीव धवन

वरिष्ठ वकील राजीव धवन इस पर तत्काल फैसला दिए जाने की मांग लेकर कोर्ट में करीब पौने घंटे तक अड़े रहे. यह मामला अयोध्या में जमीन के मालिकाना हक के मुद्दे को संविधान पीठ भेजने का नहीं है. यह 1994 के इस्माइल फारुखी फैसले में मस्जिद को इस्लाम का अभिन्न हिस्सा नहीं मानने वाली व्यवस्था को पुनर्विचार के लिए संविधान पीठ को भेजने का है.

फारुखी का फैसला अयोध्या में जमीन अधिग्रहण पर आया था. मुस्लिम पक्षकार एम सिद्दीकी के वकील राजीव धवन ने फैसले के इस अंश पर आपत्ति उठाई थी. इस पर कोर्ट ने मुख्य मामले से पहले इसी मुद्दे पर सुनवाई शुरू की थी.

पिछली दो सुनवाइयों से धवन फारुखी फैसले पर पुनर्विचार की मांग पर बहस कर रहे हैं. मामले की सुनवाई मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्र, अशोक भूषण और एस अब्दुल नजीर की पीठ कर रही है.

धवन का कहना था कि अगर बाद में मामला संविधान पीठ को गया तो उन्हें फिर से यही दलीलें देनी पड़ेंगी. कोर्ट का समय बर्बाद होगा. उन्होंने कहा कि फारुखी फैसले का असर हाई कोर्ट के फैसले पर भी पड़ा है.

कोर्ट की व्यवस्था

जस्टिस अशोक भूषण ने धवन से कहा कि वे इस मामले में प्रेस को न शामिल करें. वे अपनी बहस करें.

कोर्ट इस पर सभी को सुनने के बाद एक साथ फैसला देगा. इसके बाद धवन ने फारुखी केस की मेरिट पर बहस शुरू की.

धवन का सवाल : धवन ने पूछा कि बहुविवाह ज्यादा महत्वपूर्ण मामला है या अयोध्या? 26 मार्च को कोर्ट ने उसे संविधानपीठ को भेज दिया.

उन्होंने कहा कि वही मानदंड इस मामले में भी अपनाया जाए. प्रेस मौजूद है. कोर्ट फैसला दे.

हिन्दू पक्ष की आपत्ति

धवन की दलीलों और उनके तरीके पर एएसजी तुषार मेहता और मनिंदर सिंह ने आपत्ति उठाई.

हिन्दू पक्ष के वकील सीएस वैद्यनाथन ने कहा कि कोई कैसे कह सकता है कि अभी फैसला दो. प्रेस के आगे बताओ.

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जब वकील बोले, बकवास मत करो

राजीव धवन प्रतिवादी वकीलों से लगभग सट कर खड़े थे. एएसजी मनिंदर सिंह ने उनसे थोड़ा खिसकने को कहा तो धवन बोले कि मैं यहीं खड़ा रहूंगा. यहां से मुङो चीफ जस्टिस सीधे दिखते हैं.

सिंह ने फिर कहा कि वे थोड़ा खिसक जाएं. धवन ने जोर से कहा कि सिट डाउन मिस्टर मनिंदर सिंह सिट डाउन. बकवास मत करो. इस पर सिंह ने कहा, बकवास आप कर रहे हैं.

एएसजी तुषार मेहता ने पीठ से कहा कि आजकल कुछ वकीलों का कोर्ट में व्यवहार अक्खड़ होता जा रहा है. मैं पूरे सम्मान के साथ कहता हूं कि मेरे सम्मानित मित्र को इस बारे में क्रैश कोर्स की जरूरत है.

वरिष्ठ वकील के परासरन और सीएस वैद्यनाथन ने भी धवन के व्यवहार पर आपत्ति जताई. मुख्य मामले में बहस के दौरान भी धवन की जुबान की तेजी कायम रही और अकड़ से दलीलें रखते रहे.

कोर्ट दो समुदायों के धर्मस्थल की तुलना कैसे कर सकता है

धवन ने फारुखी फैसले को गलत बताते हुए कहा कि कोर्ट धार्मिक स्थलों की तुलना कैसे कर सकता है. इस फैसले में कोर्ट ने हिन्दूओं और मुस्लिमों के धार्मिक स्थल की ज्यादा और कम महत्वपूर्ण होने के आधार पर तुलना की है. यह गलत है.

कोर्ट को जमीन अधिग्रहण से आगे केस की मेरिट पर कुछ नहीं बोलना चाहिए था. अन्यथा अयोध्या में जमीन पर मालिकाना हक के मुकदमे का क्या मतलब रह गया.

उन्होंने कहा कि बनारस में भी मंदिर के साथ मस्जिद है. कल को उसकी भी तुलना शुरू कर दी जाएगी. धवन 27 अप्रैल को भी अपनी दलीलें जारी रखेंगे.

सुनवाई पीठ तय करने के चीफ जस्टिस के अधिकार को चुनौती

अभी तक की यही कानूनी व्यवस्था है कि चीफ जस्टिस ही मास्टर ऑफ रोस्टर होता है. यानी कौन सी पीठ किस मामले को सुनेगी, ये तय करना प्रधान न्यायाधीश के क्षेत्रधिकार में आता है, वरिष्ठ वकील और पूर्व कानून मंत्री शांति भूषण ने प्रधान न्यायाधीश के इसी अधिकार को चुनौती दी है. भूषण ने कहा है कि इस प्रक्रिया को पारदर्शी बनाया जाए.

प्रणब की किताब पर आपत्ति की याचिका से जज का किनारा

पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी की किताब ‘टबरुलेंट ईयर 1980-1996’ में हिन्दूओं की भावनाएं आहत करने वाले आपत्तिजनक तथ्य के खिलाफ हाई कोर्ट में दायर अर्जी पर सुनवाई करने से न्यायमूर्ति ने खुद को अलग कर लिया.

शुक्रवार को न्यायमूर्ति ने प्रणब को नोटिस जारी करने का मौखिक आदेश दिया,कुछ ही घंटे बाद खुद को केस से अलग कर लिया.

 

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