भाजपा गठबंधन के लिए चुनौतीपूर्ण होगा महागठबंधन का होना

एनटी न्यूज़ डेस्क/ राजनीति

बसपा मुखिया मायावती के बदले हुए रुख को लेकर भाजपा यूं ही बेचैन नहीं है. लोकसभा चुनाव से ठीक पहले महागठबंधन को लेकर बन रहे समीकरण ने उसे सोचने पर मजबूर कर दिया है. यही कारण है कि बार-बार स्टेट गेस्ट हाउस कांड की याद दिलाई जा रही है. लोकसभा चुनाव में अगर बसपा, सपा व कांग्रेस को लेकर कोई महागठबंधन बना तो भाजपा के लिए इस भेद पाने की बड़ी चुनौती होगी.

बसपा प्रमुख मायावती, बहुजन समाज पार्टी, कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, राज बब्बर

जातीय समीकरण का बड़ा खेल

यूपी की राजनीति में जातीय समीकरण का बड़ा खेला है. राजनीतिक पार्टियां इसी के आधार पर उम्मीदवारों का चयन कर उन पर दांव लगती हैं. सपा पिछड़े और अल्पसंख्यकों और बसपा दलितों की राजनीत करती है.

महागठबंधन बनने की स्थिति में यह तय है कि जातीय समीकरण के आधार पर ही उम्मीदवारों का चयन होगा और पिछड़ी, दलित जातियों के साथ अल्पसंख्यक एकजुट हुए तो विरोधी पार्टियों का समीकरण बिगड़ सकता है.

साझा रैलियां रखेंगी मायने

यूपी की राजनीति में कहा जाता है कि यादव और दलित एकसाथ जल्द नहीं आते हैं. महागठबंधन की स्थिति में अगर बसपा मुखिया मायावती व सपा मुखिया अखिलेश यादव साझा रैलियां करते हैं तो यह अंदेशा भी खत्म हो सकता है.

मायावती के बदले हुए रुख को देखकर साफ लगता है कि दोनों एकसाथ मंच साझा कर सकते हैं. वजह, मायावती अखिलेश को स्टेट गेस्ट हाउस कांड का दोषी नहीं मानती हैं. उनका कहना है कि जब यह कांड हुआ था, तब अखिलेश राजनीति में नहीं आए थे.

मायावती के रुख ने चौंकाया

राज्यसभा चुनाव में बसपा उम्मीदवार भीमराव अंबेडकर की हार के बाद मायावती का नरम रुख विरोधियों को हैरान करने वाला है. उम्मीद यह की जा रही थी कि राज्यसभा चुनाव में हार के बाद गठबंधन में दरार पड़ सकती है, लेकिन हुआ इसका बिल्कुल उलटा.

मायावती ने साफ कर दिया है कि यह रिश्ता 2019 के लोकसभा चुनाव तक और मजबूत होगा. सपा-बसपा का यह रिश्ता पहले टेस्ट यानी गोरखपुर व फूलपुर लोकसभा उप चुनाव में पास हो चुका है.

अगर इसमें कांग्रेस के साथ अन्य छोटी पार्टियों को शामिल हो गईं, तो विरोधियों के लिए यह काफी चुनौती भरा हो सकता है.

Advertisements