एनटी न्यूज़ डेस्क/ कुप्रथा पर वार
तीन तलाक के बाद अब सुप्रीम कोर्ट की पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ मुसलमानों में प्रचलित बहुविवाह, हलाला, मुता निकाह और मिस्यार निकाह पर विचार करेगी. सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने इन्हें चुनौती देने वाली चार याचिकाओं पर विचार का मन बनाते हुए केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया.
हलाला और मुता निकाह जैसी प्रथाओं पर सवाल
तलाक देने वाले पति से दोबारा शादी के लिए महिला को दूसरे व्यक्ति से शादी करके तलाक लेना होता है. इस प्रक्रिया को हलाला कहते हैं. मुता व मिस्यार निकाह में मेहर तय कर निश्चित अवधि के लिए साथ रहने का लिखित करार होता है.
निकाह समाप्त होने पर महिला तीन माह की इद्दत अवधि बिताती है. मुता निकाह शिया और मिस्यार निकाह सुन्नी में प्रचलित है. बहुविवाह की बात करें तो कोई भी मुस्लिम एक समय में चार बीवियां रख सकता है.
अब कई और मसलों पर होगी सुनवाई
सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने गत वर्ष अगस्त में एक साथ तीन तलाक को असंवैधानिक घोषित करते हुए रद कर दिया था.
तीन तलाक पर विचार करते समय ही कोर्ट ने कहा था कि वह निकाह हलाला और बहुविवाह पर बाद में विचार करेगा. अब चार याचिकाएं दाखिल हुई हैं, जिनमें हलाला, बहुविवाह, मुता व मिस्यार निकाह रद करने की मांग की गई है.
ये याचिकाएं तलाक पीड़िता समीना बेगम और नफीसा बेगम के अलावा हैदराबाद निवासी मौलिम मोहिसिन बिन हुसैन बिन अबदाद अल खतीरी और भाजपा नेता व वकील अश्वनी कुमार उपाध्याय ने दाखिल की हैं.
सुप्रीम कोर्ट जल्द गठित करेगा संविधान पीठ
सोमवार को प्रधान न्यायाधीश जस्टिस दीपक मिश्र, जस्टिस एएम खानविल्कर व डीवाई चंद्रचूड़ की पीठ ने याचिकाओं पर बहस सुनने के बाद केंद्र को नोटिस जारी किया.
कोर्ट ने मामले को संविधान पीठ को भेजने के साथ ही कहा, उचित पीठ का गठन करने के लिए मामले को प्रधान न्यायाधीश के समक्ष पेश किया जाए.
निकाह हलाला दुष्कर्म और बहुविवाह अपराध घोषित हो
याचिकाओं में मुस्लिमों में प्रचलित निकाह हलाला और बहुविवाह को असंवैधानिक घोषित करने के साथ ही निकाह हलाला को आइपीसी के तहत दुष्कर्म और बहुविवाह को अपराध घोषित करने की भी मांग की गई है. इसके अलावा मुसलमानों के शादी, तलाक और उत्तराधिकार के मामलों को तय करने वाली शरई अदालतों के खिलाफ केंद्र सरकार को उचित कार्रवाई करने का अधिकार देने का आदेश मांगा गया है.
याचिका में कहा गया है कि मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरीयत) एप्लीकेशन एक्ट 1937 की धारा 2 के उस अंश को असंवैधानिक घोषित किया जाए जो इन प्रचलनों को मान्यता देती है. ये प्रचलन मुस्लिम महिलाओं को बराबरी और सम्मान से जीवन जीने के अनुच्छेद 14, 15 और 21 के तहत मिले मौलिक अधिकारों के खिलाफ हैं.
इसमें कहा गया है कि मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के शरीयत के तहत मामले तय करने के लिए समानांतर अदालतें गठित करने के खिलाफ सरकार ने कोई कार्रवाई नहीं की जबकि समानान्तर न्यायिक व्यवस्था संविधान के खिलाफ है.
मुता-मिस्यार निकाह से जन्मे बच्चों का भविष्य अनिश्चित
मोहिसिन बिन हुसैन की याचिका में निकाह हलाला और बहुविवाह के अलावा मुता और मिस्यार निकाह को भी चुनौती दी गई है.
कहा गया है कि मुता विवाह एक निश्चित अवधि के लिए साथ रहने का करार होता है, लेकिन मुता विवाह का अधिकार सिर्फ पुरुषों को है महिलाओं को मुता विवाह करने का अधिकार नहीं है. यही मिस्यारी निकाह में भी होता है.
कहा गया है कि व्यवहारिक तौर पर ऐसे विवाहों से होने वाले बच्चों का भविष्य अनिश्चित रहता है. समाज में भी उन्हें वो सम्मान नहीं मिलता जो बाकी बच्चों को मिलता है.