ऐसा क्या है कि दुनियाभर में शत्रु माने जाने वाले दो गर्ममिजाज नेता एक दूसरे से बात करने जा रहे हैं. उत्तर कोरिया के तानाशाह किम जोंग और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के बीच ऐसा क्या हुआ कि सारा आक्रोश पिघल गया.
टाइम पत्रिका ने उन लोगों से बात की है, जो कभी उत्तर कोरिया के साथ थे, जो वार्ताकार हैं और दोनों ही पक्षों के अहम लोगों से ये जाना कि आखिर ये संभव कैसे हुआ? किम की सबसे बड़ी जरूरत पैसा और सुरक्षा है.
इस सब में किम का अपना स्वार्थ है
असल में, ट्रम्प के राष्ट्रपति बन जाने के बाद से संयुक्त राष्ट्र ने उत्तर कोरिया के खिलाफ प्रतिबंध तीन दौर में लगाए हैं. इससे उत्तर कोरिया का रेवेन्यु बुरी तरह से प्रभावित हो गया. उसका कोयला, श्रमिक और कपड़ा उद्योग का एक्सपोर्ट खत्म हो गया. अर्थव्यवस्था की हालत जर्जर हो गई.
किम ये भी जानते हैं कि यदि लड़ाई छिड़ी तो उनका देश टिक नहीं पाएगा. विशेषज्ञों की राय में इन्हीं सब कारणों से किम ने परमाणु शस्त्रों को खत्म करने की बात पर सहमति जताई साथ ही हथियारों का परीक्षण स्थगित करने पर रजामंदी जाहिर की.
किम भी चाहते हैं अमेरिका से बेहतर संबंध
कभी उत्तर कोरिया के समर्थक रहे क्लाइव ने अपने बचाव के लिए छद्म नाम से बात करते हुए कहा कि उत्तर कोरिया इसलिए भी अमेरिका से संबंध बनाना चाहता है, क्योंकि 2 करोड़ लोगों की आजीविका का सवाल है.
हो सकता है कि किम उस संधि पर भी सहमत हो जाए, जो दक्षिण कोरिया ने रूस, चीन, और जापान के साथ कर रखी है, जिसमें परमाणु अस्त्रों को खत्म करने की बात है. संयुक्त राष्ट्र ने इसकी पुष्टि की है.
उनका कहना है कि इस तरह की संधि होती है तो फिर किम को इस बात की भी आपत्ति नहीं होगी कि अमेरिका दक्षिण कोरिया में अपने 28,500 सैनिकों को रखे.
हाल ही में किम की चीन से मुलाकात ने सभी को चौंका दिया है. दरअसल, किम को चीन से तब मदद चाहिए, जब वह ट्रम्प के साथ चर्चा कर रहे होंगे. यदि कुछ होता है तो चीन उसे व्यापार में रियायत देना जारी रखे.
हाल ही में दक्षिण कोरिया और अमेरिका के बीच में जो संशोधित व्यापार संधि हुई है, जिससे अमेरिकी वाहन कंपनियों को दक्षिण कोरिया में अपने बाजार को बढ़ाने में मदद मिलेगी जबकि दक्षिण कोरिया का स्टील निर्यात अमेरिकी फैसलों के कारण गिर गया है.
क्या कहते हैं सिक्यूरिटी विशेषज्ञ
मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी में सिक्यूरिटी विशेषज्ञ जिम स्मिथ अमेरिकी वार्ताकारों की ओर से उत्तर कोरिया के अधिकारियों से परमाणु मामलों पर चर्चा कर चुके हैं.
वे कहते हैं कि परेशानी तब होगी, जब उत्तर कोरिया ये कहे कि वह परमाणु शस्त्रों को समाप्त करने पर सहमत नहीं है. ऐसे में पूरी भाषा ही बदलनी होगी. तब बात करना होगी परमाणु सुरक्षा और परमाणु ऊर्जा पर जो दुनिया के हक में होगी.