इस समाज का वन्यजीवों के प्रति इतना प्रेम है कि हिरण भी नाम सुनते ही दौड़े चले आते है

एनटी न्यूज़ डेस्क / राजस्थान / शिवम् बाजपेई

दुनिया को देखने के कई नजरिये है और फिर उसे लफ्जों में बयाँ करने के भी कई तरीके है. लेकिन यह लफ्ज सिर्फ इंसानों के हक़ में है,जानवर तो बेजुबान है. इन्हीं बेजुबानों की तकलीफ, दर्द का बीड़ा उठाना भी इंसान का परम कर्तव्य है इसी कर्तव्य को पूजा मानने वाले राजस्थान के विश्नोई समाज का बेजुबानों के प्रति लगाव इतना अतुल्यनीय है कि सोशल मीडिया पर छाये इस परिवार के बारे में लिखने को हमारी कलम बेताब हो उठी.

विश्नोई समाज…

कुछ रोज पहले मै चिड़ियाघर गया था वहां पिंजरे में कैद हिरण के पास जैसे गया वह नेट से दूर भाग गया जैसे मै उसे खा जाऊंगा. इसके बाद आज जब सोशल साईट पर कुछ चित्र देखे तो समझ से परे जिज्ञासा जाग गयी. पूरा वाक्या पढ़ने के बाद समझ में आया कि अगर आप बेजुबानों से लगाव रखते है उनके दर्द को अपना समझते है तो वह भी आपको उतना ही प्रेम करेंगे. कुछ ऐसा ही राजस्थान के विश्नोई परिवार का वन्यजीवों के प्रति प्रेम है जिसको आज हम सलाम करते है.

विश्नोई समाज

वन्यजीव प्रेमी पर्यावरण प्रेमी…

राजस्थान का विश्नोई समाज वन्यजीव प्रेमी है. इस परिवार के सदस्यों का मानना है कि पर्यवरण की सुन्दरता जीवों के बिना बेरंग है. इसके लिए यह समाज जानवरों के लिए अपने स्तर से कई ऐसे कार्य कर रहा है जो पर्यावरण की सुन्दरता में चार चाँद लगा रहे है.

प्राइवेट रेस्क्यू सेंटर…

महावीर विश्नोई घायल राष्ट्रीय पक्षी मोर का इलाज करते हुए

राजस्थान में बेजुबान जानवरों के घायल हो जाने पर यह समाज निजी रेस्क्यू सेंटर में इन जानवरों का इलाज करते है. आपको बताते चले कि यहाँ हिरण की अधिकता ज्यादा है और अक्सर जंगली कुत्ते इन्हें अपना शिकार बना लेते है.

महावीर का बड़ा काम…

राजस्थान के हनुमानगढ़ के महावीर विश्नोई प्राइवेट नौकरी करते है. महंगाई के इस दौर में जहाँ खुद के खर्च पूरे नहीं होते वहां महावीर एक प्राइवेट रेस्क्यू सेंटर खोल घायल बेजुबान जानवरों का उपचार करते है.

महावीर ने विश्नोई समाज के संस्थापक जाम्भोजी की शिक्षाओं एवं विचारधारा से परिचित हो करके उन्हीं के सिद्धांतों को अपनाना शुरू कर दिया है, क्योंकि जाम्भोजी ने 29 नियमों की आचार संहिता नियमावली में एक नियम यह भी कहां है, कि “जीव दया पालणी” तो इस नियम का पालन करते हुए वन्यजीव प्रेमी महावीर विश्नोई सेवा दे रहे हैं.

ऐसे जागा प्रेम…

जानवरों के प्रति महावीर का असीम प्रेम उस समय जागा जब आप प्रदेश के बाहर से काम कर वापस घर लौटे.  महावीर विश्नोई कई साल पहले अपने व्यवसाय और बच्चों की पढ़ाई के कारण बाहर प्रवास में रहते थे.
2012 में अपने पैतृक गांव वापस आए महावीर घर से बाहर गांव की ओर भ्रमण करने निकले तब उन्होंने वहां से गुजर रही एक बैलगाड़ी में सवार एक बच्चे को देखा जिसकी गोद में हिरण का बच्चा था.

इन्होंने बैलगाड़ी को रूकवायी ओर लड़के से वार्तालाप शुरू की. फिर लड़के से पूछा आप यह हिरणी का छोटा-सा बच्चा कहां से लायें ओर अभी आगे कहां लेके जा रहे हो ? तो लड़के ने धैर्य व शांत स्वभाव से बताया, कि यह मेरे खेत में लावारिस हालात में मिला था,  मुझे इस दया आ गयी थी. इसलिये इस हिरण को घर लेके जा रहा हूँ.

लड़का बोला , मै  समय समय पर हिरण की देखभाल करूंगा. क्योंकि इसकी मां इसको छोड़ कर कहीं जगल में भटक गयी है, जो वापस मिल नहीं पायी है. अगर किसी श्वान के नजर में आ गया तो बेचारें को बेमौत मार देगें. इसी कारण से ही इस हिरणी के छोटे बच्चें को घर लेके जा रहा हूँ.

फिर दो दिन के बाद महावीर विश्नोई को हिरणी के छोटें बच्चें की वापस याद आ गयी, क्योंकि मूक प्राणी वन्यजीव का रूप भगवान से कम नहीं है, हिरण बहुत भोलो-भाला व डरकोप जीव होता है. उसे देखने की लालसा में उस बच्चे के घर पर जा पहुंचे.

इन्होंने जाते ही हिरण को गोद में लिया ओर दुलाहरनें लग गये ओर हिरण को भी अच्छा महसूस होने लग गया. फिर दूध पिलाया ओर हिरण के साथ मस्ती करनी शुरू कर दी.

यह नजारा हिरण पालक को अच्छा लग गया और उसने महावीर विश्नोई को बोला कि आप इस बेजान मूक प्राणी हिरण को अपने घर लेके जाओं क्योंकि मेरे घर पालतु कुत्ता है, अगर हम कभी बाहर चले गये  तो यह कुत्ता हिरण को मार देगा और हजारों गुणा मुझे पाप लग जायेगा.

फिर वन्यजीव प्रेमी महावीर विश्नोई इस हिरण को अपने घर पर लेके आ गये, ओर उस हिरण का नामकरण भी कर दिया. परिवार के सभी लोग हिरण को “सीटू” नाम से पुकारने लग गये. फिर धीरे धीरे हिरण पालतु हो गया. इंसान की आवाज समझने लग गया, घर में एक संतान की तरह विचरण करने लग गया.

“सीटू हिरण” हिरण 4 साल तक इनके घर में रहा. सन 2017 में खराब मौसम के कारण या किसी अन्य कारण से अचानक सीटू  की मौत हो गयी थी.

सीटू  का मिट्टी संस्कार (दफ़नाया) विश्नोई समाज की रीति-रिवाज के अनुसार किया गया. काफी दिनों तक परिवार के सदस्यों सहित महावीर को  सीटू की याद सताती रही.

सीटू के प्रेम ने दिया कई सीटू को जन्म…

इसके बाद जब कभी भी जहाँ भी वन्यजीव घायल होने की जानकारी मिलती थी,  वहाँ दौड़कर चले जाते थे. और चाहे हिरणी का मासूम बच्चा हो या बड़ा सभी को घर ला इलाज करने लगे. फिर धीरे धीरे दोस्तों के साथ अन्य जीव प्रेमियो का साथ मिलता रहा. जीव रक्षा में विश्नोई समाज ही नहीं बल्कि अन्य अन्य समाज के लोग भी वन्यजीव प्रेमी महावीर विश्नोई से जुड़ने लग गये.

 

पहले अन्य समाज के लोग घायल वन्यजीवों को हाथ लगाने से बहुत डरते थे,  कि कहीं हम फंस न जाये.लेकिन महावीर विश्नोई द्वारा विश्वास व भरोसा दिलाने के बाद वर्तमान में अन्य समाज के हज़ारों वन्यजीव प्रेमी साथ है, ओर सहयोग दे रहे हैं, सर्व धर्म के लोग इस पुनीत कार्य में जुड़ गये है और बिना हिचक घायल जानवरों को अपने घर पर लाते है, फिर प्राथमिक उपचार के बाद तुरन्त इनको सूचना देते है. अभी जीव रक्षा का दायरा बढ़ता चला गया है.

वर्तमान में हनुमानगढ़ व श्रीगंगानगर जिले सहित कई गाँव के नजदीक आस-पास के पड़ोसी काफी इलाकों से इनके साथ जुड़ चुके है. लगभग अन्य समाज के लोग घायल वन्यजीवों को इनके पास लेके आते हैं, फिर इनके पास ही छोड़कर चले जाते है.

अगर कोई व्यक्ति के घायल वन्यजीव को महावीर विश्नोई तक लाने के लिए असंभव है,  तो सूचना पाकर महावीर तुरन्त अपना पर्सनल निजी वाहन लेकर मौके पर पहुँच जाते हैं.

वन्यजीव प्रेमीयों की सक्रियता को देखते हुए निष्क्रिय पड़ा वन विभाग भी वर्तमान में इनके साथ मिल कर जोश से वन्यजीवों को बचाने में लग गया हैं.

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निजी रेस्क्यू सेंटर…

महावीर विश्नोई ने बताया कि पिछले 5 सालों से घर पर ही रेस्क्यू सेंटर का संचालन निजी तौर पर किया जा रहा है. सेंटर पर हर साल करीबन सैंकड़ो की संख्या में घायल या बेसहारा बच्चों को लाया जाता है और इलाज व सेवा की जाती है. जो हिरण जल्द स्वस्थ या बड़ें होने पर सुरक्षित स्थानों पर छोड़ दिया जाता है, जहां हिरणों का झुंड होता है. वहां छोड़कर वापस आ जाते हैं.

हिरण की मृत्यु पर यह कार्य…

ज्यादा घायल बच्चें की मौके पर या रेस्क्यू सेंटर में मौत हो जाती है, तो उन्हे विश्नोई समाज की रीति रिवाज अनुसार मिट्टी संस्कार (दफ़नाया) दिया जाता है.

इनकी धर्मपत्नी अपनी छाती से लगा छोटे हिरणों को पिलाती है, दूध…

वन्यजीव प्रेमी श्री महावीर विश्नोई की धर्मपत्नी अपनी संतान की तरह हिरणी के छोटे छोटे बच्चों को अपनी छाती से दूध पिलाती है. ओर अपने सरकारी कार्य से छुट्टी होने के बाद इन घायल हिरणों की देख-रेख व सेवा करती है. समय समय पर दवाईं व इंजेक्शन लगाना ओर पालन पोषण करना. इनका यह विशेष काम रहता है.

अल्प मात्र प्राणी हूँ…

अब बात करते है राजस्थान के वीरावा तहसील के चितलवाना सांचौर के रघुनाथ ऐचरा विश्नोई की. जो पेशे से पत्रकार है और पत्रकारिता करते है. समाज का आईना कहे जाने वाले इस पत्रकार को वन्यजीवों के प्रति असीम प्रेम है.

राह चलते जब रघुनाथ को घायल हिरण मिल जाता है तो उसे ये अपने घर ले आते है. प्राथमिक उपचार कर जब तक हिरण पूरी तरह स्वस्थ नहीं हो जाता उसकी पूरी देख रेख करते है.

हमारी बातचीत के दौरान जब हमने रघुनाथ से उनके इस कार्य की तारीफ की तो उन्होंने कहा कि साहब इसकी कोई जरुरत नहीं मै तो अल्प मात्र प्राणी हूँ.

 

रघुनाथ ऐचरा विश्नोई (बाएं में )

ये भारत ही हो सकता है, जहां हिरण के बच्चों को महिलाएं अपना दूध पिला कर पालती हैं

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