हर चुनौती से दो हाथ मैंने किए, आंधियों में जलाए हैं बुझते दिए: अटल की कालजयी रचनाएँ व भाषण

एनटी न्यूज डेस्क/श्रवण शर्मा/नईदिल्ली 

आज पूरा देश अटल बिहारी वाजपेयी के अच्छे स्वास्थ की कामना कर रहा है। वह दिल्ली के एम्स अस्पताल में नाजुक स्थिति से गुजर रहे हैं। विपक्ष व पक्ष दलों के सभी नेता मंत्री उनका हाल जानने को अस्पताल का चक्कर लगा रहे हैं। वही देश की जनता उनकी सेहत के लिए दुआएं मांग रही है। आइये जानते हैं अटल जी के जीवन से जुड़े उनके कहे अनकहे वो भाषण या रचनाएँ जो आज कालजयी हैं।

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अटल जी के विकास और आज के विकास एजेंडे में अंतर

1990 के अंतिम वर्षो और नई शताब्दी के शुरुआती वर्षो में जब अटलजी ने देश के नेतृत्व किया तो विकास और सुशासन को राजनीतिकी न सिर्फ एजेंडा बनाया बल्कि एक ऐसा मापदंड तय कर दिया जिससे अब हर राजनेता को होकर गुजरना ही पड़ता है। देश में एक नए राजनीतिक वातावरण का निर्माण हुआ।

जो नेता अब तक सिर्फ जाति, धर्म और क्षेत्र की राजनीति कर रहे थे उन्होंने भी विकास को अपने एजेंडे में शामिल किया। अटलजी की ही देन है कि लोग आज सुशासन और विकास को बड़ा मुद्दा मानकर वोट कर रहे हैं।

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दामन पर कभी एक दाग नहीं लगा

अटल जी विपक्षी दलों से हमेशा यह बात कहते कि देश में स्वस्थ लोकतंत्र का व्यवस्था बनीं रहनी चाहिए। देश की पार्टियां बनेंगी बिगड़ेंगी लेकिन देश रहना चाहिए। 31 मई 1996 को ससंद में अपनी सरकार के विश्वास मत के दौरान उन्होंने जो भाषण दिया था. वह कालजयी रचना बन गया। सियासत की काली कोठरी में पांच दशक बिताने के बाद भी उनके दामन पर कभी एक दाग नहीं लगा।

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अटल बिहारी वाजपेयी

“जब जब कभी आवश्यकता पड़ी, संकटों के निराकण में हमने उस समय की सरकार की मदद की है, उस समय के प्रधानमंत्री नरसिंह राव जी ने मुझे विरोधी दल के रूप में जिनेवा भेजा था. पाकिस्तानी मुझे देखकर चकित रह गए थे? वो सोच रहे थे ये कहां से आ गया? क्योंकि उनके यहां विरोधी दल का नेता राष्ट्रीय कार्य में सहयोग देने के लिए तैयार नहीं होता. वह हर जगह अपनी सरकार को गिराने के काम में लगा रहता है, यह हमारी प्रकृति नहीं है, यह हमारी परंपरा नहीं है. मैं चाहता हूं यह परंपरा बनी रहे, यह प्रकृति बनी रहे, सरकारें आएंगी-जाएंगी, पार्टियां बनेंगा-बिगड़ेंगी पर यह देश रहना चाहिए…इस देश का लोकतंत्र अमर रहना चाहिए”…. अटल बिहारी बाजपाई

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अटल जी के कुछ ऐतिहासिक भाषण

”कई बार यह सुनने में आता है कि वाजपेयी तो अच्छा लेकिन पार्टी खराब….अच्छा तो इस अच्छे बाजपेयी का आप क्या करने का इरादा रखते हैं?

”आज प्रधानमंत्री हूं, थोड़ी देर बाद नहीं रहूंगा, प्रधानमंत्री बनते समय कोई मेरा हृदय आनंद से उछलने लगा ऐसा नहीं हुआ, और ऐसा नहीं है कि सब कुछ छोड़छाड़ के जब चला जाऊंगा तो मुझे कोई दुख होगा….”

”मैं 40 साल से इस सदन का सदस्य हूं, सदस्यों ने मेरा व्यवहार देखा, मेरा आचरण देखा, लेकिन पार्टी तोड़कर सत्ता के लिए नया गठबंधन करके अगर सत्ता हाथ में आती है तो मैं ऐसी सत्ता को चीमटे से भी छूना पसंद नहीं करूंगा.”

”हमारे प्रयासों के पीछे 40 सालों की साधना है, यह कोई आकस्मिक जनादेश नहीं है, कोई चमत्कार नहीं हुआ है, हमने मेहनत की है, हम लोगों के बीच गए हैं, हमने संघर्ष किया है, यह पार्टी 365 दिन चलने वाली पार्टी है. यह कोई चुनाव में कुकरमुत्ते की तरह खड़ी होने वाली पार्टी नहीं है. ”

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भारत में विरोधी दल भी सत्ता पक्ष का साथ देते हैं।  । यह वक्तव्य पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने संसद में दिया था। वाजपेयी ने कहा कि पाकिस्तान वाले भी दंग रह गए जब जेनेवा में देश का प्रतिनिधित्व उन्होंने किया जबकि वे विरोधी दल के नेता थे। क्योंकि पाकिस्तान में विपक्ष तो सरकारों को गिराने के षड्यंत्र में ही लगा रहता है। इसके इतर भारत में विपक्ष देशहित में मसलों में सरकार का साथ देता है।

”शीश नहीं झुकेगा”

एक नहीं, दो नहीं, करो बीसों समझौते

पर स्वतंत्र भारत का मस्तक नहीं झुकेगा

अगणित बलिदानों से अर्जित यह स्वतंत्रता

त्याग, तेज, तप, बल से ‍रक्षित यह स्वतंत्रता

प्राणों से भी प्रियतर यह स्वतंत्रता..

इसे मिटाने की ‍साजिश करने वालों से

कह दो चिनगारी का खेल बुरा होता है

औरों के घर आग लगाने का जो सपना

वह अपने ही घर में सदा खरा होता है.

ठन गई! मौत से ठन गई!

जूझने का मेरा इरादा न था, मोड़ पर मिलेंगे इसका वादा न था,

रास्ता रोक कर वह खड़ी हो गई, यूं लगा जिंदगी से बड़ी हो गई.

मौत की उमर क्या है? दो पल भी नहीं, जिंदगी सिलसिला, आज कल की नहीं.

मैं जी भर जिया, मैं मन से मरूं, लौटकर आऊंगा, कूच से क्यों डरूं?

तू दबे पांव, चोरी-छिपे से न आ, सामने वार कर फिर मुझे आजमा.

मौत से बेखबर, जिंदगी का सफ़र, शाम हर सुरमई, रात बंसी का स्वर.

बात ऐसी नहीं कि कोई ग़म ही नहीं, दर्द अपने-पराए कुछ कम भी नहीं.

प्यार इतना परायों से मुझको मिला, न अपनों से बाक़ी हैं कोई गिला.

हर चुनौती से दो हाथ मैंने किए, आंधियों में जलाए हैं बुझते दिए.

आज झकझोरता तेज़ तूफ़ान है, नाव भंवरों की बांहों में मेहमान है.

पार पाने का क़ायम मगर हौसला, देख तेवर तूफ़ां का, तेवरी तन गई.

मौत से ठन गई.

 

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