एनटी न्यूज़ डेस्क/ लापरवाही
राज्यपाल कल्याण सिंह की स्वाइन फ्लू जांच रिपोर्ट प्रकरण में राजस्थान सरकार का मेडिकल विभाग खुद फंसता हुआ नज़र आ रहा है. जांच को कई बार करवाने के बावजूद भी मामला साफ़ नहीं हो पाया है और उधर स्वास्थ्य मंत्री कालीचरण सराफ सामने आकर जांच सही होने का बयान दे रहे हैं.
राज्यपाल कल्याण सिंह को स्वाइन फ्लू प्रकरण में जयपुर की टीम दिल्ली के अपोलो अस्पताल में हो आई. आकर खुद की रिपोर्ट ही सही बताई. दिल्ली का अपोलो अस्पताल भी अपनी ही रिपोर्ट को सही बता रहा है. इस रिपोर्ट में सबसे बड़ा पेच यह है कि दिल्ली गई टीम ने अपोलो अस्पताल से जितने भी सवाल किए थे, उनमें से अपोलो ने किसी का भी जवाब नहीं दिया. वजह बताई- जयपुर टीम प्रॉपर चैनल से नहीं आई. ऐसे में हम कोई जानकारी नहीं देते.
गंभीर हैं ये सारे सवाल…
इस बीच, स्वास्थ्य मंत्री कालीचरण सराफ ने विधानसभा में एसएमएस मेडिकल कॉलेज की रिपोर्ट को सही बताया.
ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि आखिर कोई स्वाइन फ्लू पॉजिटिव पेशेंट संक्रामक वायरस के साथ पब्लिक में कैसे घूम सकता है?
साथ ही दो टैमीफ्लू टैबलेट खाने से क्या राज्यपाल का वायरस संक्रमण खत्म हो गया होगा?
ये सवाल गंभीर इसलिए भी हैं क्योंकि राज्यपाल रिपोर्ट आने के बाद पिछले चार दिन से समारोहों में जनता के बीच है.
गौरतलब है कि राज्यपाल का रविवार दोपहर एक बजे सैंपल लिया गया. शाम 4 बजे स्वाइन फ्लू की रिपोर्ट पॉजिटिव आई. रात को विशेष विमान से राज्यपाल को दिल्ली के अपोलो अस्पताल में भेजा गया. यहां पर जांच रिपोर्ट नेगेटिव आई.
दोनों अस्पतालों ने अपनी रिपोर्ट पास कर दी… ध्यान रहे ये हमारे भरोसे की जांच है
एसएमएस के अपोलो अस्पताल से ये थे सवाल
Q1. कौन सा किट काम में लेते हैं?
Q2. किस मशीन के माध्यम से जांच की जाती है?
Q3. हर दिन कितने सैंपलों की जांच की जाती है?
Q4. छह माह में कितने सैंपलों की जांच की गई?
Q5. जांच में लगे टैक्निशयन की क्वालिफिकेशन क्या हैं?
इनमें से किसी सवालों का जवाब अपोलो अस्पताल प्रबंधन ने नहीं दिया.
अपोलो प्रशासन ने कहा-हमारी रिपोर्ट ही सही
अपोलो अस्पताल प्रशासन के प्रवक्ता का कहना है कि कमेटी की रिपोर्ट न तो अभी तक अपोलो अस्पताल प्रशासन को मिली है और न ही इस बारे में जानकारी है.
ऐसे में कमेटी की रिपोर्ट के बारे में कुछ नहीं कह सकते, लेकिन अपोलो अस्पताल की रिपोर्ट सही है. इस पर प्रशासन अभी भी कायम है.
एसएमएस की टीम बोली – अपोलो की जांच गलत, क्योंकि…
अपोलो की जांच की मशीन मेडिकल कॉलेज से कमजोर है. जांच के समय लिया गया किट खराब हो सकता था. सैंपल कलेक्शन प्रॉपर नहीं लिया.
राज्यपाल ने मेडिकल कॉलेज की रिपोर्ट के बाद दो टेमू फ्लू टेबलेट खा ली गई थी. इस वजह से भी जांच रिपोर्ट नेगेटिव हो सकती है.
माइनर इंफेक्शन होने पर टैमी फ्लू जल्दी असर करती है. ऐसे में टेबलेट खाने पर वायरस का असर कम हो सकता है. इस वजह से भी रिपोर्ट नेगेटिव आ सकती है.
…और एसएमएस को यूं मिली ओके रिपोर्ट!
खुद बनाई रिपोर्ट
एसएमएस मेडिकल कॉलेज के डॉ. राकेश माहेश्वरी (टीम में शामिल) ने बताया कि हमारी टीम ने अपोलो अस्पताल से कई सूचना मांगी थीं, उन्होंने नहीं दी.
इसके बाद हमारी टीम ने अपनी इंटरनल स्टडी रिपोर्ट सरकार को सौंप दी.
कॉलेज प्रिंसिपल ने पढ़ी ही नहीं
एसएमएस मेडिकल कॉलेज के प्रिंसिपल डॉ. यूएस अग्रवाल ने बताया- मैंने बिना अध्ययन किए रिपोर्ट मेडिकल शिक्षा सचिव को सौंप दी. यहां रिपोर्ट मंत्री को चली गई है. रिपोर्ट में क्या है यह तो मंत्री ही बता सकते हैं.
मंत्री का बयान- एसएमएस सही
स्वास्थ्य मंत्री कालीचरण सराफ ने कहा है- दिल्ली गई टीम ने माना है कि सामान्य लैब में स्वाइन फ्लू रिपोर्ट कई कारणों से नेगेटिव आ सकती है.
उन्होंने कहा कि सही सैंपल न होना, सैंपल में पीसीआर इनवेंटर होना, कम मात्रा में वायरस आदि कारण हो सकते हैं. एसएमएस में अत्याधुनिक मशीनें व प्रशिक्षित स्टाफ है. लिहाजा, यहीं की रिपोर्ट सही है.
सैंपल से हो सकती है 4 बार जांच
एक सैम्पल से करीब चार बार कोई भी जांच की जा सकती है लेकिन मेडिकल कॉलेज ने राज्यपाल के खून का सैंपल दो बार में खत्म किया.
राज्यपाल की रिपोर्ट पर बहस बढ़ी तो एसएमएस ने 4 मरीजों के सैंपल प्राइवेट लैब में भेजे, लेकिन इनमें राज्यपाल का सैंपल नहीं था.
क्या कहती हैं डॉ.भारती मल्होत्रा
एसएमएस मेडिकल कॉलेज की माइक्रोबायोलॉजी लैब इंचार्ज डॉ.भारती मल्होत्रा बताती हैं- राज्यपाल के सैंपल से 2 टेस्ट हो चुके थे, उनका सैंपल खत्म हो गया. विशेषज्ञों और प्राइवेट लैब इंचार्जों की मानें तो स्वाइन फ्लू के एक सैंपल से 3 से 4 बार टेस्ट किया जा सकता है.
उन्होंने कहा कि अब सवाल- जब कॉलेज प्रशासन की साख दांव पर लग गई थी तो कॉलेज ने राज्यपाल के सैम्पल की क्रास जांच प्राइवेट लैब में क्यों नहीं कराई?
निजी अस्पतालों के एक्सपर्ट की राय
सीतापुरा की एक माइक्रोबायोलॉजी लैब के इंचार्ज व सीकर रोड स्थित अस्पताल के इंफेक्शन डिजीज कंसलटेंट कहते हैं- स्वाइन फ्लू का सैंपल तय तापमान (यह माइनस 15 से 20 डिग्री सेंटीग्रेड हो सकता है.) पर रखा जाए तो 3-4 बार जांच की जा सकती है.
वह खाते हैं कि जांच सैंपल में करीब 3 एमएल वायरल ट्रांसपोर्ट मीडियम होता है, जबकि एक समय जांच में .2 से .5 एमएल वायरल ट्रांसपोर्ट मीडियम काम में आता है. जांच के लिए लिया गया एक सैंपल से कई बार जांच की जा सकती है.
स्त्रोत- (यह खबर दैनिक भास्कर, राजस्थान के रपट सहारे लिखा गया है)