एनटी न्यूज़ डेस्क/कानपुर देहात /अमित पाण्डेय
त्यौहार चाहे वो होली हो या दीपावली जैसे-जैसे इनके दिन नजदीक आते है, मन में उत्सुकता जाग जागती हैं, कि कैसे इन त्यौहारों को ख़ास बनाया जाए. लेकिन इन्हीं त्यौहारों में अगर कोई घटना घटित हो जाए, तो दिल और दिमाग में उस घटना का खौफ बन जाता हैं. फिर इनसे रिश्ता टूट जाता हैं. ऐसा ही कुछ उत्तर प्रदेश के कानपुर देहात में बसे गाँवों में घटित हुआ. जिसके बाद यहाँ के लोगों का वर्षों तक त्यौहारों से कोई रिश्ता नहीं रहा.
कानपुर देहात का बीहड़ पट्टी…
कानपुर देहात, जिले की बीहड पट्टी में बसे गांवो मे कई वर्ष पूर्व होली, दीवाली सहित तमाम त्यौहार कब गुजर जाते थे. इन पिछडे गांव के लोग जान नही पाते थे. हर्ष उल्लास व होली के फाग, दीवाली के पटाखों बजाय यहाँ सुनाई देती थी गोलियों की आवाज़े.
इसके बाद एक पल मे समूचे बीहड क्षेत्र मे सन्नाटा पसर जाता था.
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दस्यु सुंदरी ने बदले की होलिका जलाई…
दस्यु सुंदरी फूलन देवी की कहाँनी का गवाह गांव बेहमई, जहाँ खुशियां किसी कोने मे सिमटी हुयी थी.
बताते चले कि होली के कुछ दिन पूर्व ही 14 फरवरी 1989 का दिन था, जब बदले की आग में दस्यु सुंदरी फूलन देवी ने 20 लोगो को कतार में खड़ा करके गोलियों से भून दिया था. इसके बाद दहशत के मनहूस साये ने लोगो को अपने आगोश में ले लिया. और रंग बिरंगी होली कई वर्षों के लिए मातम में तब्दील होकर रह गयी.
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जिंदा हो रही पुरानी परम्परा…
लेकिन अब गुजरते समय के साथ पुरानी परम्परायें फिर से जिंदा हो गयी है. अब इस गाँव के लोगों का भी मन त्यौहारों उत्सुकता के लिए जाग गया हैं. अब उन सन्नाटों की जगह होली के पूर्व ही फाग सुनाई दे रहे है.
खून की होली पर अब होली के रंग, अबीर का प्रभाव जम चुका है. त्यौहार मे अब महज 3 दिन शेष है और यमुना बीहड पट्टी के कई गांवो मे होली का रंग लोगों पर चढ़ना शुरू हो गया है.
फाल्गुनी गीतों के साथ ढ़ोलक, मजीरों, झींका, हरमोनियम की आवाजें सुनाई देने लगी हैं.होली का फ़ाग गायन के लिये बेहमई, बिझौना, बैजामऊ,आदि गांवो मे गायकों की जमातें सजने लगी. देर रात तक ढ़ोलक, मजीरों, हरमोनियम व झींको की धुनो पर लोग बमन गये.
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धान श्याम मथुरा मे केसर बै आए, बन आए गोपीनाथ वैध बनवारी और फगुना तोरी अजब बहार, गोरी मचल रही नैहर मां आदि फाग पर लोग थिरक रहे है.
फाग गायन की टोलियां अपनी तैयारियों मे जुट गयी है.
चिप्स पापड से छत होने लगी गुलजार…
होली के रंगों में बेहमई गांव के लोग रंग चुके है. रंगो के बादल लोगों की छतों पर साफ दिखने लगे है. घर की महिलाओं ने तैयारियां शुरू कर दी है. इस त्यौहार पर चिप्स पापड का अलग महत्व है.
लगभग हर घर मे चिप्स पापड बनाए जा रहे है. घर की छतों एवं छज्जों पर कहीं ननद-भौजाई तो कहीं देवरानी- जेठानी या सास-बहू हंसी ठिठोली करती चिप्स पापड व चावल की कचरी बनाने मे जुट गयी है.
गोबर से बच्चे पाथ रहे है बल्ले…
नन्हे मुन्ने बच्चे गोबर को एकत्रित कर उनके बल्ले बनाने मे मशगूल है. क्योकि इस पर्व पर होलिका दहन के पूर्व लकड़ियों से एकत्रित होलिका का पूजन किया जाता है.
उसके बाद गेहूं की बाली व गोबर के बल्ले होली की आग मे भूनने की प्रथा है. जिसके बाद परिवार के सभी सदस्य उस बाली के दाने खाते है और सुलगते हुये बल्ले से घर मे आग जलाई जाती है. मान्यता है कि उस आग के धुंए से घर का शुद्धीकरण होता है.
इस बीहड़ की वादी में अब वो रंग नहीं…
बुजुर्ग रामबाबू तिवारी का कहना है कि वर्तमान की होली अब वह रंग नही बिखेरती है, जो पहले इस बीहड़ की वादियों में हुआ करती थी. ढाँके से तरह-तरह के रंग बनाए जाते थे.
उन्होंने कहा कि कंकड़ मार मारकर महिलाएं होली खेलती थी. लेकिन उस घटना के बाद कुछ वर्षों के लिए होली का रंग ठहर सा गया. अब होली होती है, फाग गाये जाते है. और लोग मस्ती में झूमते है.
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