भारत में शरीयत कानून व हिन्दू एक्ट के मायने जानिए एक नजर में

एनटी डेस्क/दिल्ली/श्रवण शर्मा 

इस्लाम धर्म के अनुयायियों के लिए शरीयत इस्लामिक समाज में रहने के तौर-तरीकों, नियमों और कायदों के रूप में कानून की भूमिका निभाता है। पूरा इस्लामिक समाज इसी शरीयत कानून या शरीया कानून के हिसाब से चलता है।

शरीयत क्या है

शरीयत इस्लाम के भीतर सामाजिक, धार्मिक, राजनीतिक, आर्थिक और सांस्कृतिक रूप से जीने के लिए कायदों की व्याख्या करता है। यह बताता है कि इन तमाम पहलुओं के बीच एक मुसलमान को कैसे जीवन का निर्वहन करना चाहिए।

ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड

भारत में शरीयत से संबंधित नियम कायदों को संचालित करने के लिए एक संस्था का गठन 1937 में किया गया। इसका नाम था ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड इसकी स्थापना 1937 में अंग्रेजों ने की थी। इसका उद्देश्य मुसलमानों के सभी मामलों का इस्लामिक कानून के मुताबिक निपटारा करना था।

सरकार दखल नहीं दे सकती

इस तरह मुस्लिम पर्सनल लॉ एप्लिकेशन एक्ट साल 1937 में पास हुआ। दरअसल इसका इस्लामिक कानून कोड तैयार करना था। इस तरह 1937 से ही मुस्लिमों के शादी,  विरासत और पारिवारिक विवादों के फैसले इस एक्ट के तहत ही होते हैं। खास बात यह है कि इस एक्ट के मुताबिक व्यक्तिगत विवादों में सरकार दखल नहीं दे सकती।

सिविल कोड

आपको बता दें कि भारत में जिस तरह से इस्लामिक समाज में समस्‍याओं के निपटारों के लिए शरीयत की व्यवस्‍था है, वैसे ही दूसरे धर्मों के लिए भी ऐसे कानून की व्यवस्था है। इसे सिविल कोड कहा जाता है। जैसे 1956 का हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, इसके तहत हिंदू, बुद्ध, जैन और सिखों की पैत्रक संपत्ति का बंटवारा होता है। ऐसे ही 1936 का पारसी विवाह-तलाक एक्ट और 1955 का हिंदू विवाह अधिनियम जैसे कानून भी भारत में हिंदू समाज के भीतर कई मामलों का निपटारा करते हैं।

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