एनटी न्यूज़ / संपादकीय डेस्क / योगेश मिश्र
स्वतंत्रता संग्राम की लड़ाई शुरू करने वाले मंगल पांडेय का जन्म 19 अप्रैल 1827 में उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के नगवा गांव में हुआ था. ब्रिटिश शासन के ईस्ट इंडिया कंपनी के बंगाल नेटिव इंफैंट्री की 34वीं बटालियन के जांबाज सिपाही थे.
20 साल का युवा मंगल भर्ती हुआ सेना में
पिता दिवाकर पांडेय बहुत ही धार्मिक प्रवृत्ति के थे तो जन्म से ही मंगल में धार्मिक भावना कूट-कूट कर भरी हुई थी. वह सेना में सन् 1849 में भर्ती हुए.
पढ़ें- केंद्र सरकार के इस फैसले से बदल जाएंगे किसानों के हालात
विद्रोह का कारण बनी कारतूस पर लगी चर्बी
ब्रिटिश शासन का विरोध करने का कारण सेना में इस्तेमाल की जाने वाली बंदूक थी. वह बंदूक पैट्रन 1853 एनफील्ड की थी. वह सभी आधुनिक तकनीकों से लैस थी लेकिन उसमें प्रयोग की जाने वाली कारतूस को बंदूक में लगाने से पहले दांतों से काटकर खोलना पड़ता था. तब भी दिक्कत नहीं थी. दिक्कत तब हो गई जब यह पता चला की कारतूस में आवरण के तौर पर चर्बी का इस्तेमाल हो रहा है. यह बात मंगल पांडेय को नागवार गुजरी.
पढ़ें- कैटरीना का ऐसा लुक! आपने कभी देखा नहीं होगा
जब मना कर दिया कारतूस को दांत से खोलने के लिए…
29 मार्च 1957 के दिन सैनिकों के अभ्यास के दौरान कारतूस को मंगल पांडेय से काटने के लिए कहा गया लेकिन मंगल पांडे कारतूस को दांतों में लगाने के लिए सहमत न हुए. जिससे रेज़ीमेंट के अफसर लेफ्टीनेंट बाग़ ने उनको बुरा-भला कह दिया. इस घटना का अंजाम लेफ्टीनेंट को ऐसे भुगतना पड़ा कि मंगल पांडेय ने उसे बंदूक के कुंदे से मार-मारकर घायल कर दिया.
पढ़ें- ये छोटा सा पौधा दिलाता है इन बड़े रोगों से छुटकारा
किसी की हिम्मत नहीं हो रही थी गिरफ्तारी करने की
इस घटना के बाद मंगल पांडेय ने जमकर ब्रिटिश शासन की बगावत की. इनको गिरफ्तार करने का आदेश दिया गया. एक सिपाही शेख पलटू के अलावा किसी ने भी मंगल पांडेय को गिरफ्तार करने की हामी नहीं भरी.
वफादारी देख ली, अब क्रोध देखिए…
मंगल पांडेय के ब्रिटिश शासन के विरोध करने के आह्वान का सभी साथियों ने खुलकर समर्थन किया. महानायक मंगल पांडेय ने अपने बगावती आवाज में कहा था कि ‘अभी तक आपने हमारी वफादारी देखी, अब हमारा क्रोध देखिए’.
पढ़ें- गोलगप्पे की दुनिया से निकला यह युवा अब थामेगा बल्ला, अंडर 19 में हुआ सेलेक्ट
राष्ट्र और धर्म के लिए यह सब किया…
इस विरोध की उठती आवाज को दबाने के लिए अंग्रेजों ने महानायक मंगल पांडेय को 8 अप्रैल 1857 को फांसी दे दी. फांसी में लटकने से पहले आजादी के महानायक ने कहा था- ‘कुछ भी किया वह राष्ट्र और धर्म के लिए किया. अंग्रेजों से मेरा कोई व्यक्तिगत द्वेष नहीं.’
जब एक सिपाही को फांसी दी गई तो बगावत और जवान हो गई
भारत माता के इस निडर सपूत की फांसी के लगभग एक महीने के बाद ही 10 मई 1857 को मेरठ की छावनी में भी बगावत हो गई.
पढ़ें- सब ‘जिम्मेदार’ ऐसे हो जाएं तो हो जाए बेड़ा गर्क
हिल गए अंग्रेजों के पांव
यह कारवां यहीं नहीं रुका देखते ही देखते पूरे उत्तर भारत में बगावत की आग फैलती गई और अंग्रेजों के यह संकेत मिल गया था कि अब भारत में राज करना आसान नहीं.
कोई दूसरा मंगल पांडेय न बन जाए…
लेकिन यह सब देखते हुए अंग्रेजों ने लगभग 34 हजार कानून हिन्दुस्तान की भोली-भाली जनता पर थोप दिए गए जिससे फिर कोई मंगल पांडेय जैसा सिपाही बगावत न कर सके.
भारत सरकार ने जारी किया डाक टिकट
भारत सरकार ने वीर स्वतंत्रता सेनानी मंगल पांडेय को हमेशा याद रखने के लिए और उनके प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने के लिए 1983-84 में उनके नाम एक डाक टिकट भी जारी किया था.
पढ़ें- जानिए देश के सर्वश्रेष्ठ जिलाधिकारी के बारे में, गिनीज़ बुक ऑफ रिकॉर्ड में भी दर्ज है इनका नाम
संपादनः योगेश मिश्र