Monday , 20 May 2024

शोध में आया सामने दिल्ली-देहरादून के प्रदूषण का ग्लेशियरों पर कोई असर नहीं

जलवायु परिवर्तन के दूसरे सबसे बड़े कारण ब्लैक कार्बन की मात्र गंगोत्री ग्लेशियर में महज 0.9 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर मिली है. वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान के ताजा अध्ययन में यह पता चला है. देश में पहली बार किसी ग्लेशियर क्षेत्र में ब्लैक कार्बन के आंकड़े लिए गए हैं.

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अध्ययन की उपयोगिता को देखते हुए करंट साइंस जैसे अंतरराष्ट्रीय स्तर के जर्नल में न सिर्फ इसे जगह दी गई, बल्कि अध्ययन को कवर पेज का हिस्सा भी बनाया गया है.

वाडिया संस्थान के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. पीएस नेगी के अनुसार ब्लैक कार्बन वाहनों के धुएं और जंगल की आग आदि से निकलता है. ऐसे में विश्वभर के वैज्ञानिक मान रहे थे कि इससे ग्लेशियरों की सेहत पर प्रतिकूल असर पड़ रहा होगा.

हालांकि आज तक ग्लेशियर क्षेत्रों में ब्लैक कार्बन की मॉनिटरिंग न होने के चलते सब कुछ कयास पर ही टिका था. ऐसे में निर्णय लिया गया कि दिल्ली व देहरादून के सबसे करीब व अहम गंगोत्री ग्लेशियर पर ब्लैक कार्बन की मॉनिटरिंग की जाए.

इसलिए घातक है ब्लैक कार्बन : ब्लैक

कार्बन के कण सूरज की ऊष्मा को अवशोषित कर लेते हैं. इससे ऊष्मा धरती पर ही रहती है और यह प्रभाव ग्लोबल वार्मिंग कहलाता है.

गंगोत्री ग्लेशियर क्षेत्र में ब्लैक कार्बन महज 0.9 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर पाया गया.

सुमन सेमवाल कहती हैं कि हिमालय के ग्लेशियरों को लेकर विश्वभर के वैज्ञानिकों में जो शंका थी, उसका समाधान देहरादून स्थित वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान के विशेषज्ञों ने कर दिया है.

यूरोपीय मानक का भी 25वां भाग

यूरोपीय मानक के मुताबिक ब्लैक कार्बन की अधिकतम सीमा औसतन 25 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर होनी चाहिए, जबकि भारत में अधिकतम सीमा 60 है. इस तरह गंगोत्री ग्लेशियर में यूरोपीय सीमा के 25वें हिस्से से भी कम और भारतीय सीमा के 60वें हिस्से से भी कम प्रदूषण पाया गया.

चीड़वासा में एथलोमीटर लगाए गए

इसके लिए गंगोत्री ग्लेशियर के करीब 3800 मीटर की ऊंचाई पर भोजवासा व 3600 मीटर की ऊंचाई पर चीड़वासा में एथलोमीटर लगाए गए. एथलोमीटर से हर मिनट के अंतराल पर एक रीडिंग ली गई.

700 से अधिक रीडिंग के माध्यम से ब्लैक कार्बन का जो औसत निकलकर आया, वह महज 0.9 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर था.

डॉ. पीएस नेगी के मुताबिक आंकड़े बताते हैं कि दिल्ली व देहरादून जैसे शहरों के प्रदूषण से अभी हमारे ग्लेशियर अछूते हैं.

ब्लैक कार्बन के आंकड़ों ने न सिर्फ ग्लेशियर क्षेत्रों में प्रदूषण की ताजा स्थिति बयां की, बल्कि भविष्य में जब भी अध्ययन किए जाएंगे, यह आंकड़े आज और उस समय के हालात बयां करने का भीकाम करेंगे. यह आंकड़े अब बेस लाइन (आधार रेखा) डाटा भी बन गए हैं.