एनटी न्यूज डेस्क/दिल्ली/श्रवण शर्मा
कैप्टन विक्रम बत्रा का जन्म नौ सितंबर 1974 को हिमाचल प्रदेश के पालमपुर जिले के घुग्गर में हुआ था। उनके पिता का नाम जीएम बत्रा और माता का नाम कमल बत्रा है। शुरुआती शिक्षा पालमपुर में हासिल करने के बाद कॉलेज की पढ़ाई के लिए वह चंडीगढ़ चले गए थे।
जुड़वां पैदा हुए थे, बिक्रम
9 सितंबर, 1974 को अध्यापक गिरधारी लाल बत्रा एवं माता कमला शहीद कै. विक्रम बत्तरा के पिता जीएल बत्तरा एवं माता कमला बत्रा के घर जुड़वां बच्चे पैदा हुए थे। दो बेटियों के बाद जुड़वां बच्चों के जन्म पर दोनों के नाम लव-कुश रखे थे। लव यानी विक्रम और कुश यानी विशाल। उनकी प्रारंभिक शिक्षा मां कमला के मार्गदर्शन में हुई। बत्रा के जन्म के समय परिवार मंडी के जोगेंद्रनगर में रहता था, बाद में स्थाई रूप से पालमपुर में आकर बस गए। उन्होंने केंद्रीय विद्यालय पालमपुर से जमा दो के बाद डीएवी कालेज चंडीगढ़ में बीएससी की। वह एनसीसी के होनहार कैडेट थे।
मां ने घर को बनाया पाठशाला
1974 में पालमपुर में रहने वाले जी. बत्रा का घर 9 सितंबर को बच्चों की किलकारियों से गूंज उठा। पत्नी कमलकांता ने दो जुड़वा बच्चों को जन्म दिया था। नामकरण हुआ तो एक का नाम रखा गया लव और दूसरे का कुश. लव यानी विक्रम औऱ कुश यानी विशाल। दोनों बच्चे बचपन से कुशाग्र थे। चूंकि मां पेशे से शिक्षिका थीं, इसलिए उन्होंने घर को पाठशाला बना दिया और दोनों को पढ़ाना शुरु कर दिया।
पाक ने दिया था कोडनेम
शेरशाह जिस समय कारगिल वॉर चल रहा था कैप्टन बत्रा दुश्मनों के लिए सबसे बड़ी चुनौती में तब्दील हो गए थे। ऐसे में पाकिस्तान की ओर से उनके लिए एक कोडनेम रखा गया और यह कोडनेम कुछ और नहीं बल्कि उनका निकनेम शेरशाह था। इस बात की जानकार खुद कैप्टन बत्रा ने युद्ध के दौरान ही दिए गए एक इंटरव्यू में दी थी।
साथी की जान बचाते हुए शहीद
में जम्मू एंड कश्मीर रायफल्स के ऑफिसर कैप्टन विक्रम बत्रा अपने टुकड़ी के साथ प्वाइंट 4875 पर मौजूद दुश्मनों से लोहा ले रहे थे। तभी उनके जूनियर ऑफिसर लेफ्टिनेंट नवीन के पास एक विस्फोट हुआ। इसमें नवीन के दोनों पैर बुरी तरह जख्मी हो गए। कैप्टन बत्रा नवीन को बचाने के लिए पीछे घसीटने लगे, तभी उनकी छाती में गोली लगी और 7 जुलाई 1999 को भारत का ‘शेर शाह’ शहीद हो गया। अलसुबह चोटी पर तिरंगा तो लहराया लेकिन इस देश ने अपना एक जाबांज लाल खो दिया। उनके आखिरी शब्द थे- जय माता दी।
रणनीति का योद्धा
कारगिल वॉर में 13 जेएके राइफल्स के ऑफिसर कैप्टन विक्रम बत्रा के साथियों की मानें तो कैप्टन बत्रा युद्ध मैदान में रणनीति का एक ऐसा योद्धा था जो अपने दुश्मनों को अपनी चाल से मात दे सकता था। यह कैप्टन बत्रा की अगुवाई में उनकी डेल्टा कंपनी ने कारगिल वॉर के समय प्वाइंट 5140, प्वाइंट 4750 और प्वाइंट 4875 को दुश्मन के कब्जे से छुड़ाने में अहम भूमिका अदा की थी।
डिंपल’ को अपना दिल दे बैठे थे विक्रम
विक्रम बत्रा ने पूरे समर्पण से अपने कर्तव्य का निर्वाह किया। युद्ध के मैदान का देश गवाह है कि कैसे अपनी रणनीति और जांबाजी से उन्होंने कारगिल युद्ध के समय प्वाइंट 5140, प्वाइंट 4750 और प्वाइंट 4875 से दुश्मनों को खदेड़ दिया था। प्यार की गवाह उनकी गर्लफ्रेंड डिंपल चीमा हैं। कारगिल वार से लौटकर वो डिंपल से शादी करने वाले थे। एक न्यूज वेबसाइट को इंटरव्यू देते हुए डिंपल ने बताया था कि जब एक बार उन्होंने विक्रम से शादी के लिए कहा तो उन्होंने चुपचाप ब्लेड से अपना अंगूठा काटकर उनकी मांग भर दी थी। विक्रम वापस तो लौटे लेकिन तिरंगे में लिपटकर।
परमवीर चक्र विजेता
कैप्टन बत्रा चंडीगढ़ से अपनी पढ़ाई पूरी करने वाले कैप्टन बत्रा ने इंडियन मिलिट्री एकेडमी में दाखिला लिया। यहां से एक लेफ्टिनेंट के तौर पर वह भारतीय सेना के कमीशंड ऑफिसर बने और फिर कारगिल युद्ध में 13 जम्मू एवं कश्मीर राइफल्स का नेतृत्व किया। कारगिल वॉर में उनके कभी न भूलने वाले योगदान के लिए उन्हें सर्वोच्च सम्मान परमवीर चक्र से अगस्त 1999 को सम्मानित किया गया।
पर्दे पर जिंदा हुई शहादत
जेपी दत्ता की फिल्म एलओसी में बॉलीवुड एक्टर अभिषेक बच्चन ने कैप्टन विक्रम बत्रा का किरदार अदा किया था।
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