Monday , 13 May 2024

शान ए लखनऊ की चिकनकारी की चमक फिर लौटेगी

एनटी न्यूज़ डेस्क/ इंवेस्टर्स समिट

लखनऊ की चिकनकारी की मांग सिर्फ लखनऊ में ही नहीं बल्कि  देश-विदेशों में तक भी थी. लेकिन समय के साथ इसकी मांग घटती जा रही है. चिकनकारी का व्यापार बिखरता चला गया और इसकी चमक फीकी पड़ने लगी. पूरी दुनिया में मशहूर लखनवी चिकनकारी का लखनऊ में अब तक कोई ठिकाना नहीं बन पाया है. लखनऊ की अलग-अलग दिशाओं में चिकनकारी हो रही है. ऐसे में अब मांग होने लगी है कि लखनऊ का कोई एक हिस्सा चिकन नगर के नाम से होना चाहिये. जिससे इसके बारें में लखनऊ में आने वाले पयर्टकों को पता चल सके.

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इसके लिए सरकार को अब पहल करनी होगी और कम कीमत पर जमीन उपलब्ध करानी होगी. लखनऊ में होने वाली ग्लोबल इंवेस्टर्स समिट को लेकर चिकनकारी से जुड़े लोगों की उम्मीदें भी बढ़ती दिख रही है.

हालांकि, इस बदरंग तस्वीर को संवार फिर से दुनियाभर में लखनवी चिकनकारी की खोई हुई वहीं पुरानी पहचान वापस दिलाने की कोशिशें शुरू हो चुकी हैं. प्रदेश सरकार की पहल से एक जिला एक उत्पाद में लखनवी चिकनकारी को शामिल कर असंगठित चिकन कारोबार को संगठित किया जा रहा है. इसके लिए पूरा खाका भी तैयार हो चुका है.

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300 करोंड़ का कारोबार…

जिला उद्योग एवं उद्यम प्रोत्साहन केंद्र लखनऊ के उपायुक्त सर्वेश्वर शुक्ला ने बताया कि एक जिला एक उत्पाद की क्षेणी में शामिल होने के बाद विभाग की ओर से सर्वेक्षण कराया जाएगा. प्रोफेशनल की ओर से होने वाले सर्वे के माध्यम से चिकनकारी और जरदोजी के कारीगरों के विकास, एकीकृत स्थान और आर्थिक उन्नति का खाका तैयार कराया जाएगा.

1300 करोड़ का कारोबार1जिला उद्योग केंद्र से प्राप्त जानकारी के मुताबिक कारोबार में गिरावट आने के बाद भी सालाना चिकन कारोबार 300 करोड़ के करीब है. इसमें करीब 100 करोड़ का विदेशों में निर्यात है. सरकार की अपेक्षा और चीन के बढ़ते दखल के बावजूद अब भी चिकन कारोबार अरबों का है.

हिंदुस्तान  के अलावा पाकिस्तान, दुबई, बांग्लादेश व जापान सहित यूरोप में अब भी इसकी मांग है. चिकन के कारीगरों ने पश्चिम देशों के अपने कद्रदानों के लिए इंडो-वेस्र्टन स्टाइल ईजाद किया था. इससे यह बात साफ जाहिर होता है कि इस कारोबार को व्यवस्थित कर संगठित कर दिया जाए, तो फिर से लखनवी चिकनकारी अपनी पुरानी पहचान हासिल कर लेगी.

कारीगरों को मिले नियमित रूप से ट्रेनिंग…

एके चिकन के मालिक अनुज दीक्षित कहते हैं कि कच्चा माल उपलब्ध करवाने, कारीगरों को उचित भुगतान करने, निर्यात पर जोर देन, वित्तीय निवेश जुटाने के लिए योजनाबद्ध तरीके से काम करना होगा. इसके अलावा सरकार और निजी कंपनियों की भागीदारी को बढ़ाना होगा. इससे कारीगरों को नियमित ट्रेनिंग देकर चिकनकारी को बढ़ावा मिलेगा.

वहीं  श्री श्याम चिकन सरोवर के विमल कुमार चौधरी के मुताबिक चिकनकारी का उद्योग बिखरा हुआ है. बाजार की मांग और निर्यात की सही जानकारी नहीं है. जीएसटी लगने से बुरा असर पड़ा है. कच्चे माल की कमी और पर्याप्त वित्तीय सहायता न होने से और लगातार चीन के मशीनी काम से मिल रही प्रतिस्पर्धा ने लखनऊ की चिकनकारी के कारोबार को 50 फीसद तक घटा दिया है.

जीएसटी से पड़ा असर

जीएसटी का बुरा असर चिकन कारोबार पर पड़ा है. चिकनकारी प्योर हैंडीक्राफ्ट है. इसके बावजूद चिकन के कारोबार को जीएसटी के दायरे में रखा गया है. इससे चिकन के कपड़ों की कीमतों में बढ़ोतरी हुई है और कारोबार में गिरावट आई है. जानकारों के मुताबिक जीएसटी लगने के बाद 60 फीसद कारोबार में कमी आई है.

एक हजार की खरीदारी व फैब्रिक पर पांच फीसद और एक हजार से अधिक के कपड़ों पर 12 फीसद जीएसटी है. जीएसटी लगने की वजह से कारोबारी कम माल तैयार कर रहे हैं, इससे कारीगरों को काम नहीं मिल रहा और वह चिकनकारी छोड़कर अन्य कारोबार कर रहे हैं. सबसे ज्यादा चिकन कारीगर ई-रिक्शा चला रहे है.

चिकनकारी पर ड्रैगन की भी  नजर…

चिकन कारोबार में चीन का दखल बढ़ता जा रहा है. चीन चिकन कारोबार पर दो तरफ से कब्जा जमा रहा है. एक तो मशीन से तैयार चिकन के कपड़ों को कम कीमत में बेचकर लखनवी चिकनकारी की मांग को आधा कर दिया है. दूसरा लखनऊ में तैयार होने वाले चिकन में लगने वाले जार्जेट का कपड़ा. वह भी चीन से ही आता है. चीन की इस दोहरी मार से न केवल विदेशों में लखनऊ की चिकनकारी का निर्यात घटा, बल्कि क्षेत्रीय कारोबार में भी चीन का दखल बढ़ा है.

पिछले दिनों उद्योग मंडल एसोचैम ने अपने ताजा अध्ययन में कहा कि उत्पादित कुल चिकन का केवल पांच फीसद कपड़ों को निर्यात किया जा रहा है, जबकि शेष 95 फीसद को किसी तरह घरेलू बाजार में खपाया जा रहा है. मशीन से बनाए जा रहे चीनी चिकन के कपड़े लखनवी चिकन कारोबार को चुनौती दे रहे हैं.

मशीन से तैयार चिकन के कपड़े लखनवी चिकन से 30 फीसद सस्ते हैं. कारोबारी अरुण आहूजा ने बताते है कि चिकन में प्रयोग होने वाला 20 फीसद फैब्रिक चीन से आता है. जार्जेट और विसकोस जार्जेट चीन से आता है, जबकि 80 फीसद फैब्रिक में देसी कॉटन, सिल्क और खादी ही प्रयोग होता.

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