Friday , 10 May 2024

सेकुलरिज्म कितना मौसमी है ?

न्यूज़ टैंक्स | लखनऊ

लेखक- पीयूष द्विवेदी

पिछले दिनों बेंगलुरु में एक दलित कांग्रेस विधायक के भतीजे की पैगंबर पर अशोभनीय पोस्ट के कारण पूरा बेंगलुरु शहर सांप्रदायिक हिंसा की चपेट में आ गया। जिसके कारण सरकारी संपत्ति का नुकसान हुआ 3 लोगों की जान चली गई 60 से ज्यादा पुलिसकर्मी जख्मी हो गए कई बसें और 300 से ज्यादा गाड़ियां फूंक दी गई। और वहां के तथाकथित मुस्लिम नेताओं ने इसका समर्थन किया और सबसे आश्चर्यजनक बात जो प्रियंका गांधी और राहुल गांधी हर छोटी से छोटी बात पर किसी न किसी माध्यम से प्रतिक्रिया देते हैं। उनकी पार्टी के दलित विधायक के घर पर हमला हुआ इसके विरोध में उन्होंने और उनकी पार्टी में एक शब्द भी नहीं बोला। वह अवार्ड वापसी गैंग जो पिछले कुछ वर्षों से बता रहा है कि इस देश में असहिष्णुता बहुत बढ़ गई है वह भी इतनी बड़ी घटना पर चुप रहा। ना ही फिल्मी जगत से इस घटना का कोई विरोध हुआ और तो और जो पार्टियां इस देश में दलित और मुसलमानों की एकता की बात करती हैं और यह कहती नहीं थकती की मीम और भीम एक हैं में ,उन्होंने भी इस पर कुछ नहीं बोला जब भीम पर मीम भारी पड़ गया ना ही किसी को दलितों की सुरक्षा का ख्याल आया किसी को भी इस घटना में दलित का उत्पीड़न नहीं दिखाई दिया। यहां तक की बसपा सुप्रीमो मायावती ने भी इस घटना पर कोई प्रतिक्रिया देना जरूरी नहीं समझा।

मैं यह नहीं कह रहा वह पोस्ट सही थी वह 100% गलत थी, लेकिन मुस्लिम समुदाय ने जो रास्ता अपनाया वह भी 100% गलत था।

क्या हमारे संवैधानिक ढांचे के स्तंभ के रूप में पंथनिरपेक्षता का लक्ष्य केवल इतना है कि एक पंथ निरपेक्ष राष्ट्र की स्थापना हो, जो मजहबी अल्पसंख्यकों के अपनी कट्टरता मे धंसे रहने के ‘अधिकार’ की रक्षा करें? अथवा यह की पंथनिरपेक्षता का सिद्धांत हर नागरिक का आदर्श बने और उसकी मनोरचना है का अंग बनकर जीवन के हर कार्य को मार्गदर्शन दें? कुछ ऐसी प्रश्न पूछे जाएं वह उनके उत्तर प्राप्त हो तभी देश में एक स्वस्थ, पंथनिरपेक्ष राजनीति की परंपरा बनेगी । बिना पंथनिरपेक्ष नागरिकों के पंथनिरपेक्ष राज्य की रचना संभव नहीं। पिछले कुछ समय से वामपंथी यह चर्चा देश में फैला रहे हैं कि जब से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा सरकार बनी है देश में हिंदुत्व भाव बढ़ रहा है।

लेकिन बेंगलुरु दंगों से पहले ही देश में एक और महत्वपूर्ण घटना घटी। 500 वर्षों के हिंदू समाज के संघर्ष के बाद और सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के बाद 5 अगस्त 2020 को अयोध्या में राम मंदिर का भूमि पूजन हुआ उसी दिन असदुद्दीन ओवैसी ने प्रतिक्रिया दी वहां बाबरी मस्जिद थी बाबरी मस्जिद है और बाबरी मस्जिद रहेगी ,ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने भी प्रतिक्रिया दी कि वहां पर बाबरी मस्जिद रहेगी और सुप्रीम कोर्ट ने यह निर्णय राजनीतिक दबाव में आ कर दिया है ,लेकिन क्या हिंदू समाज द्वारा भी ऐसी ही प्रतिक्रिया दी गई जो बेंगलुरु में मुसलमानों द्वारा दी गई। क्योंकि जो स्थान मुसलमानों के लिए पैगंबर रखते हैं उससे कहीं अधिक हिंदुओं के लिए राम रखते हैं लेकिन अगर हिंदू समाज ऐसी प्रतिक्रिया देता तो क्या विपक्षी पार्टी ,अवार्ड वापसी गैंग ,वामपंथी ,तथाकथित बुद्धिजीवी ,कलाकार जगत के लोग ऐसी ही शांति बनाए रखते जो उन्होंने बेंगलुरु हिंसा के बाद बनाई रखी। इस वर्ष बेंगलुरु दंगे पहली घटना नहीं है जिसके कारण अशांति फैली हो जब मोदी सरकार सी ए ए का कानून संसद में लाई तो दिल्ली से लेकर भारत के कई शहरों में दंगे हुए उस कानून में भी ऐसा क्या गलत था। जिसके कारण कई विरोधियें को कानून अपने हाथ में लेना पड़ा क्या हिंदू समाज विश्व में पीड़ित हो रहे अपने हिंदू भाइयों को क्या अपने देश में शरण भी नहीं दे सकता इसमें उसने मुस्लिम समाज के कौन से अधिकार का हनन कर दिया ।

क्या मुस्लिम समाज को तुष्टीकरण की राजनीति करने वाले नेता उसे इस मनोदशा से बाहर निकलने ही नहीं देना चाहते वह यह समझ नहीं पा रहे कि भारत अब 21 वी शताब्दी का एक नया राष्ट्र है जो किसी भी प्रकार की कट्टरपंथ प्रवृत्ति को सहन नहीं करेगा यदि फिर वही मार्ग अपनाया गया जिसके कारण देश का विभाजन हुआ, तो जो लोग पुनः विभाजन करना चाहते हैं और फूट के बीज बोना चाहते हैं उनके लिए यहां कोई स्थान नहीं होगा कोई कोना नहीं होगा। एक बार संविधान सभा की बैठक में नजर उद्दीन अहमद ने सरदार पटेल से कहा था यदि हम छोटे भाई की मांगों को स्वीकार नहीं करेंगे तो हम उसके प्यार को गवा देंगे तब सरदार पटेल का उत्तर था मैं उसके प्यार को गंवाने के लिए तैयार हूं अन्यथा बड़े भाई की मृत्यु हो सकती है ।आज फिर से वही स्थिति इस देश में आ गई है तुष्टीकरण की राजनीति के कारण एक विशेष अल्पसंख्यक समाज की हर मांग को जायज ठहराया जाता है उसकी हर गलती को छुपाया जाता है ।यही कारण है जिसके कारण मुस्लिम समाज और हिंदू समाज मैं बार-बार संघर्ष होता है उसके लिए मुसलमान समाज जिम्मेदार नहीं है बल्कि यह तुष्टीकरण की राजनीति करने वाले नेता जिम्मेदार हैं उन्हें अपनी इस मानसिकता से अब बाहर आना होगा और इस देश को हिंदू मुसलमान की नजरों से देखना छोड़ कर 130 करोड़ भारतीयों की नजर से देखना होगा ।

(लेखक पीयूष द्विवेदी भाजयुमो की राष्ट्रीय कार्यसमिति के सदस्य हैं, कानपुर में एकेडिमिशियन हैं अथवा ये उनके निजी विचार हैं)