Tuesday , 30 April 2024

प्रश्नों से भागती सरकार

न्यूज़ टैंक्स | लखनऊ

लोकसभा अध्यक्ष ने यह निर्देश जारी किया कि 14 सितंबर से शुरू होने वाले संसद के मानसून सत्र में प्रश्नकाल नहीं होगा। भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में यह अपने आप में एक अनोखी घटना है ,जब सरकार महामारी की आड़ लेकर संसदीय कार्य प्रणाली की मूल भावना के साथ ही खिलवाड़ कर रही हो।

संसदीय प्रक्रिया में सरकार के क्रियाकलापों ,उसके निर्णय अथवा समाज के किसी अन्य महत्वपूर्ण मुद्दे पर संसद सदस्यों को प्रश्न पूछने का अधिकार होता है। प्रश्नकाल में पूछे गए प्रश्नों को कम से कम 10 दिन पहले लिखित रूप में लोकसभा अथवा राज्यसभा अध्यक्ष (स्पीकर) को सूचित करना होता है ।

प्रश्नों की तीन श्रेणियां निर्धारित हैं – तारांकित , गैर तारांकित एवं अल्प अवधि वाले प्रश्न , यह स्पीकर के स्वविवेक पर होता है कि वह प्रश्नों को किस श्रेणी में रखा है ।

तारांकित प्रश्नों में वह प्रश्न आते हैं जिनका जवाब सरकार के संबंधित विभाग के मंत्री द्वारा मौखिक रूप से दिया जाता है।

गैर तारांकित प्रश्न उस श्रेणी में आते हैं जिसमें प्रश्न के उत्तर में कुछ पेचीदगियां होती हैं और उन्हें लिखित रूप में जवाब दिया जाता है ।

अल्प समाधि वाले प्रश्न वह होते हैं जिन्हें निर्धारित सीमा से कम समय में पूछा गया हो और इनका जवाब भी मौखिक ही दिया जाता है ।

प्रश्न यह उठता है की वर्तमान सरकार प्रश्नों से बचना क्यों चाह रही है ? अगर कोरौना काल में अन्य सारी प्रक्रियाएं उसी तरह संपादित की जा रही हैं, ऐसे में इस महत्वपूर्ण प्रक्रिया पर पाबंदी लगाने का औचित्य क्या है!!

असल में सरकार को आभास है कि विपक्ष उसे तीन गंभीर मुद्दों पर घेरेगा ।

आर्थिक मामले ,देश की सीमा और सुरक्षा से जुड़े मामले और कोरॉना काल में महामारी से निपटने के लिए उठाए गए कदमों की गंभीरता और औचित्य के बारे में,,,
हाल ही में आए अर्थव्यवस्था के आंकड़ों के अनुसार इस वैश्विक महामारी के द्वितीय क्वार्टर में देश की जीडीपी -23 से भी ज्यादा पहुंच गई है। इसके अलावा राज्यों को जीएसटी का भुगतान करने के वादे से भी केंद्र सरकार के मुकरने से विपक्ष को सरकार को घेरने का एक मजबूत मुद्दा मिल गया है।

गौरतलब है कि पूरे देश में जीएसटी लागू करते समय केंद्र के द्वारा राज्यों को यह आश्वस्त किया गया था कि उनकी करो से होने वाली आय में जो कमी आएगी उसकी भरपाई केंद्र सरकार के द्वारा की जाएगी। ऐसे में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण का यह बयान कि राज्यों को आरबीआई से लोन लेना चाहिए ने ज्यादातर राज्य सरकारों में बौखलाहट पैदा कर दी है।

वित्त मंत्री का यह कथन कि वर्तमान महामारी जोकि “एक्ट ऑफ गॉड” है उसके परिप्रेक्ष्य में केंद्र सरकार उनके आय की कमी की भरपाई करने में असमर्थ है, यह बात राज्य सरकारों को पच नहीं रही। राज्य इस बात पर अड़े हुए हैं कि केंद्र को अपने वादे पूरे करने चाहिए,, और एक तरह से यह जीएसटी की सफलता पर एक सवालिया निशान भी खड़ा करता है।
कोरोना महामारी के पहले आई सरकारी रिपोर्ट के अनुसार बेरोजगारी दर दिसंबर 2019 में 8. 9 हो गई थी जोकि विगत 45 सालों की सबसे बड़ी बेरोजगारी दर है। ऐसे में विपक्ष के द्वारा यह प्रश्न स्वाभाविक है कि हर साल दो करोड़ नौकरियां के रोजगार देने का वादा करके आई सरकार ने आज नौजवानों को हाशिए पर ला दिया है। 2019 – 20 में ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री अपने न्यूनतम स्तर पर थी और रियल स्टेट की हालत भी कमोबेश उसी तरह थी। 10 लाख से ज्यादा रोजगार ऑटोमोबाइल सेक्टर में जा चुके हैं। इसके अलावा कॉरोना के ही दौरान सरकार के द्वारा एयरपोर् की नीलामी, रेलवे में भर्तियों पर रोक, बैंकिंग और पैरा बैंकिंग क्षेत्र में आई गंभीर मंदी पर विपक्ष के प्रश्नों से सरकार की स्थिति असहज होना अवश्यंभावी है ।

देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस के नेता राहुल गांधी के द्वारा सरकार के गलत कदमों के कारण होने वाली आर्थिक मंदी का पूर्वानुमान और लगातार मीडिया और सोशल मीडिया में हमलावर होने से भी सरकार अपने आपको हर तरफ से घिरता हुआ देख रही है ।

राहुल गांधी के द्वारा रघुराम राजन जैसे विख्यात अर्थशास्त्रियों से कोरोना काल में ही अर्थव्यवस्था पर चिंतन और वार्ता करने के कारण भी आम जनमानस के दिमाग में यह प्रश्न घर कर गया है कि विभिन्न आर्थिक मुद्दों पर क्या सरकार के पास डॉ मनमोहन सिंह जैसा कोई अर्थशास्त्री है, जो कि इस गंभीर संकट से निजात दिला सके।
इस मामले में अमर्त्य सेन से लेकर वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के अर्थशास्त्री पति के द्वारा भी सरकार की नीतियों और क्रियाकलापों पर प्रश्न उठाना सरकार के गले की हड्डी बन गया है।l

दूसरी तरफ “एक्ट ईस्ट पॉलिसी” का ढिंढोरा पीटते हुए पड़ोसी देशों से मधुर संबंधों को बनाने का दावा करने वाली मोदी सरकार भारत में “चीनी घुसपैठ” और नेपाल जैसे छोटे देश के द्वारा भी आंखें दिखाए जाने के कारण बैकफुट पर आ गई है ।

सरकार की सबसे ज्यादा छीछालेदर प्रधानमंत्री जी का वह बयान करवा रहा है जिसमें उन्होंने सार्वजनिक रूप से गलतबयानी की कि ना कोई देश की सीमाओं में घुसा है और न घुसने दिया जाएगा। जबकि आज तक कई स्तरों पर राजनयिक वार्ताओं के बाद भी चीन अपने घुसपैठ के हिस्से से पीछे हटने को तैयार नहीं है ।साथ ही जून में भारतीय सेना के जवानों को की बर्बरता पूर्वक हत्या भी आम जनमानस में असंतोष का कारण है। इस मुद्दे को लेकर भी विपक्ष खासकर राहुल गांधी प्रधानमंत्री पर अत्यंत हमलावर हैं और निकट भविष्य में भी इन समस्याओं का कोई समाधान प्रत्यक्ष रूप में न दिखने के कारण सरकार के पास मुंह छुपाने के अलावा और कोई चारा नहीं है ।

कोरौना जैसी महामारी से निपटने के तौर-तरीकों पर भी सरकार बुरी तरह से घिरी हुई है, जिसमें बहुत बड़ा योगदान शुरुआती दौर में प्रधानमंत्री जी का स्वयं को मसीहा साबित करने की नाकाम कोशिशों का भी है, जिसमें उनके प्रचार तंत्र ने बड़ी भूमिका निभाई ।

प्रधानमंत्री और उनके सहयोगियों के प्रचार तंत्र ने उनके हास्यास्पद निर्णयों को भी मास्टर स्ट्रोक बताने की कोशिश की , जिसमें शुरुआती दौर में रविवार को लगाया गया 12 घंटे का कर्फ्यू , जिसमें मीडिया और सोशल मीडिया पर श्रृंखलाबद्ध तरीके से जनमानस को यह बताने की कोशिश की गई कि शनिवार से रविवार तक लगभग 24 घंटे आदमी घर में रहेगा और कोरोना मात्र 12 घंटे में मर जाता है,, तो उस कोरोना की चेन ब्रेक हो जाएगी।

उसके बाद रात्रि 9:00 बजे 9 मिनट तक घरों की बत्तियां और टॉर्च व दीए जलाने का आवाहन प्रधानमंत्री जी के द्वारा किए जाने पर बताया जाने लगा कि 9 अंक मंगल ग्रह का अंक है और अग्नि से मंगल ग्रह जो ऊर्जावान ग्रह है उसे क्रियाशील किया जा रहा है, जिससे कोरोना खात्मा हो जाएगा ।

तात्कालिक तौर पर यह प्रचार तंत्र मोदी जी को एक अत्यंत बुद्धिजीवी, दूरदर्शी मसीहा के रूप में स्थापित करने में जरूर कामयाब हो गया, लेकिन जिस प्रकार से कोरौना बढ़ता गया और पूरे विश्व में भारत कोरोना मामले में नंबर 1होने की होड़ में शामिल हो गया ,उसने आम जनमानस के दिमाग में गंभीर सवालों को जन्म दे दिया। साथ ही जिस प्रकार से प्रवासी मजदूरों की की पीड़ा, अस्पतालों की बदहाली, प्राइवेट अस्पतालों की लूट, प्राइवेट स्कूलों द्वारा किसी प्रकार की रियायत न देना और सरकारी कोई अंकुश ना होना, इन सारी चीजों ने सरकार की कार्यप्रणाली पर प्रश्नवाचक चिन्ह लगा दिया है! सहायता के वितरित होने वाली फ्री राशन किट में भी बंदरबांट और जाति, धर्म एवं पार्टी की निष्ठाओं के आधार पर उपलब्धता की घटनाएं भी जनता द्वारा महसूस की गई, जिसने सरकार की साख पर बट्टा लगाने का काम किया है ।

अहमदाबाद और आगरा में कोरोणा के मामलों में हुई अप्रत्याशित वृद्धि ने व्यक्तिगत तौर पर मोदी जी को “नमस्ते ट्रंप” के आयोजन को लेकर कटघरे में खड़ा कर दिया है।
विपक्ष का मानना है के जिस समय अंतरराष्ट्रीय उड़ानों को रद्द कर के एयरपोर्ट बंद कर दिया जाना चाहिए था, उस समय मोदी सरकार विदेशों से लोगों को ला रही थी। जो कि कोरौना वृद्धि का कारण बना।

इस पूरे घटनाक्रम में कांग्रेस नेता राहुल गांधी के द्वारा 30 जनवरी और 12 फरवरी को ट्वीट करके इस महामारी से होने वाले मानवी और आर्थिक नुकसान को इंगित करना और सरकार व सरकार के मंत्रियों का उस पर ध्यान न देते हुए राहुल गांधी को ही अफवाहें न फैलाने की सीख देना आज मोदी सरकार पर भारी पड़ रहा है।

इन तीम प्रमुख मुद्दों के अलावा प्रधानमंत्री आपदा राहत कोष के रहते हुए “पीएम केयर्स फंड” सृजित करने के औचित्य ,नई शिक्षा नीति में निजीकरण की ओर बढ़ते कदम, रेलवे के लगभग 200 रूट पर निजी कंपनियों को रेल संचालन के लिए आमंत्रण जैसे कई मुद्दे हैं जिन पर विपक्ष सरकार को को घेरने का मंसूबा पाले बैठा है,,

वहीं दूसरी तरफ सरकार के सिपहसालारों को इन सब मुद्दों पर कोई मजबूत बचाव दिखता नजर नहीं आ रहा। ऐसे में विपक्षी दलों के प्रश्नों का सामना ही न करना पड़े ऐसा उपाय सरकार के संकट मोचकों द्वारा बना लिया जाना स्वाभाविक है।

लेखक सर्वोच्च न्यायालय के अधिवक्ता और राजनैतिक चिंतक हैं।

ऐसे में दुष्यन्त कुमार की कलम से ये सामाजिक दर्द लिखा था

“तेरा निज़ाम है
सिल दे जुबांन ए शायर को
ये एहतियात जरूरी है इस बहर के लिए”

लेखक- कमलाकर त्रिपाठी कांग्रेस से जुड़े हैं..ये उनके निजी विचार हैं