Monday , 29 April 2024

‘वजूद’ बतायेगी जिनकी खूबसूरती और तालियां दोनों चुभती हैं

एनटी न्यूज डेस्क/ लखनऊ

कभी अपने जीवनसाथी से पूछ कर देखिएगा – अगर मैं हिजड़ा होती तो क्या तुम्हें ये इश्क कुबूल होता? सवाल थोड़ा चुभता है ना? किसी कांटे की तरह। पर यही सवाल पूछती है विशाल श्रीवास्तव की फिल्म वजूद, अपने केंद्रीय पात्र के ज़रिए जो एक हिजड़ा है। यूं कहिए कि हमारे समाज के मानकों के हिसाब से एक ऐसा समुदाय जिसका वजूद हमें कांटे की तरह चुभता है। और इसलिए वो हिजड़ा अपने प्रेमी से पूछ ही बैठती है कि अगर मैं हिजड़ा ना होती, तब क्या मेरा इश्क तुम्हें कुबूल होता। सवाल उसे भी उतना ही चुभता है।
विशाल श्रीवास्तव की फिल्म मासूम है, किसी भी नौजवान के मन में पहले प्यार की फुहार की तरह लेकिन इस फुहार पर किसी तेज़ तूफान की तरह गिरते हैं समाज के प्रश्न। क्या एक हिजड़े का प्यार भी उतना सादा और मासूम हो सकता है? या फिर यूं कहिए कि क्या वाकई एक हिजड़ा उसी तरह प्यार की खुमारी में डूब सकता है जैसे कि हम और आप?

और ये सारे प्रश्न छीन लेते हैं उस मासूम से सपने को जो एक हिजड़ा देखती है। फिल्म में उसका कोई नाम है या नहीं इस पर आपका ध्यान नहीं जाएगा क्योंकि उसका वजूद उसके नाम से नहीं, उसके समुदाय से है। उस समुदाय से जिसके नियम और कानून समाज ने अलग बना रखे हैं।
हालांकि वजूद केवल प्रश्न नहीं उठाती, जवाब भी देती है। एक हिजड़ा को उसका अस्तित्व देती है और प्यार करने का हक और वजह भी देती है। वो प्रेम जो सबसे ज़रूरी है। जो इंसान खुद से करता है। किसी के भी मज़बूत होने की सबसे पहले कड़ी।
वजूद के ज़रिए विशाल श्रीवास्तव  एक हिजड़े को खुद से प्रेम करना तो सिखा जाते हैं। लेकिन उम्मीद है कि ये फिल्म समाज को भी ये सिखा जाए कि केवल सेक्शन 377 पर बात करने से और कानूनी कसीदे पढ़ने से उन नियमों में कोई बदलाव नहीं आने वाले जो हमने और आपने एक हिजड़ा के लिए बना रखे है। वो नियम जिन्हें बनाने का हक समाज के पास वैसे भी नहीं है।
विशाल श्रीवास्तव पहली बार किसी सामाजिक मुद्दे पर बात नहीं कर रहे हैं। उनकी पहली शॉर्ट फिल्म शर्मिंदा, समाज में महिलाओ की स्थिति उजागर करती है जिसे हम और आप कितना समझा पाते हैं पता नहीं, लेकिन एक रिक्शावाला समझ पाता है और शर्मिंदा होता है खुद के इंसान होने पर। शर्मिंदा को 2015 के रॉयल स्टैग लार्ज शॉर्ट फिल्म में बेस्ट फिल्म और बेस्ट डायरेक्टर के अवार्ड से सम्मानित किया गया था। वहीं उनकी दूसरी फिल्म वजूद को कशिश मुंबई क्वीयर फिल्म फेस्टिवल में रियाध वाडिया बेस्ट फिल्ममेकर अवार्ड से नवाज़ा गया है।
बावरा मांझी प्रोडक्शन्स बैनर तले इन फिल्मों का एक और मज़बूत पक्ष है इन फिल्मों का संगीत। ये गाने आपको चुभते हैं पर आपके साथ रह जाते हैं। विशाल के साथ इन गानों को कंपोज़ किया है चयन डे ने। इन फिल्मों और गीतों को यू ट्यूब के अलावा आप सुन सकते हैं विशाल – चयन के फेसबुक पेज पर।

( डायरेक्टर: विशाल श्रीवास्तव
कास्ट: प्रणित हट्टे, रणधीर चौधरी, माधुरी सारोदे शर्मा, क्षितिज गेरा)