Sunday , 28 April 2024

सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला, इच्छामृत्यु को दी सशर्त मान्यता

‘जब मुझे जिंदगी की उपयोगिता न लगे तो मैं अपनी मर्जी से मृत्यु स्वीकार करूँगा’. इसी अवधारणा पर भारत की सबसे बड़ी न्यायिक संस्था सुप्रीम कोर्ट ने एक व्यक्ति को न्याय देते हुए मरणासन्न व्यक्ति द्वारा इच्छामृत्यु के लिए लिखी गई वसीयत (लिविंग विल) को सशर्त मान्यता दे दी. इसके लिए सुप्रीम कोर्ट ने बाकायदा कुछ दिशा-निर्देश भी जारी किया है.

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क्या है सुप्रीम कोर्ट का फैसला?

सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार (9 मार्च) को एक याचिका पर सुनवाई करते हुए मरणासन्न व्यक्ति द्वारा इच्छामृत्यु के लिए लिखी गई वसीयत (लिविंग विल) को सशर्त मान्यता दे दी.

इस पर आदेश देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हर व्यक्ति को गरिमा के साथ मरने का अधिकार है और किसी भी इंसान को इससे वंचित नहीं किया जा सकता.

सुप्रीम कोर्ट ने इच्छामृत्यु चाहने वाले लोगों के लिए एक गाइडलाइन जारी की है, जो कि कानून बनने तक प्रभावी रहेगी.

कौन-कौन था इस पीठ में…?

इच्छामृत्यु पर आदेश और दिशा-निर्देश देने के लिए इस पीठ में सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायधीश दीपक मिश्रा सहित पांच जजों की संवैधानिक पीठ ने अपना फैसला सुनाया.

भारत के प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा ने इस फैसले पर टिप्पणी करते हुए कहा कि पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ के अन्य सदस्य भी न्यायालय की ओर से जारी दिशा-निर्देशों और हिदायतों से इत्तेफाक रखते हैं.

क्या कहा है सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले पर

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि असाध्य रोग से ग्रस्त व्यक्ति ने उपकरणों के सहारे उसे जीवित नहीं रखने के संबंध में यदि लिखित वसीयत दिया है, तो यह वैध होगा.

कोर्ट ने कहा कि इस संबंध में कानून बनने तक उसकी ओर से जारी दिशा-निर्देश और हिदायत प्रभावी रहेंगे. दरअसल शीर्ष कोर्ट उस याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें मरणासन्न व्यक्ति द्वारा इच्छामृत्यु के लिए लिखी गई वसीयत (लिविंग विल) को मान्यता देने की मांग की गई थी.

सुप्रीम कोर्ट ने अपनी गाइडलाइन में कहा कि इच्छामृत्यु पर आखिरी फैसला मेडिकल बोर्ड करेगा.

अपने फैसले में कोर्ट ने कहा कि बोर्ड तय करेगा कि इलाज संभव है या नहीं. अगर मेडिकल बोर्ड कहेगा कि इलाज संभव नहीं तो लाइफ सपोर्ट सिस्टम हटा सकते हैं.

शीर्ष न्यायालय ने अपनी गाइडलाइन में यह भी कहा कि स्वस्थ व्यक्ति डीएम की निगरानी में लिविंग विल लिख सकता है.

लिविंग विल न होने की स्थिति में पीड़ित के रिश्तेदार हाईकोर्ट जा सकते हैं, लेकिन हाईकोर्ट भी मेडिकल बोर्ड के आधार पर ही फैसला लेगा.

सुप्रीम कोर्ट के फैसले के 5 अहम बिंदू:

लिविंग विल को कुछ शर्तों के साथ मंजूर दी गई.
कानून बनने तक सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन को मानना होगा.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि व्यक्ति को गरिमा के साथ मरने का अधिकार.
सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन में कहा गया कि लाइलाज बीमारी होगी तो लिखकर देना होगा.
असाध्य रोग से ग्रस्त व्यक्ति ने उपकरणों के सहारे उसे जीवित नहीं रखने के संबंध में यदि लिखित वसीयत दिया है, तो यह वैध होगा.