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दारा सिंह: पहलवान से रामायण के ‘हनुमान’ तक का सफर “पुण्यतिथि विशेष”

एनटी डेस्क न्यूज /लखनऊ/श्रवण शर्मा 

दारा सिंह सा पहलवान भारत को दोबारा नहीं मिल सका। कई पीढियां दारा सिंह पहलवान का नाम सुनते ही बड़ी हुई हैं। बचपन से ही पहलवानी के दीवाने रहे दारा सिंह का पूरा नाम ‘दारा सिंह रंधावा’ था। हालांकि चाहने वालों के बीच वे दारा सिंह के नाम से ही जाने गए। ‘सूरत सिंह रंधावा’ और ‘बलवंत कौर’ के बेटे दारा सिंह का जन्म 19 नवंबर, 1928 को पंजाब के अमृतसर के धरमूचक गांव के जाट-सिक्ख परिवार में हुआ था।

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उन्होंने खेल और मनोरंजन की दुनिया में समान रूप से नाम कमाया और अपने काम का लोहा मनवाया। यही वजह है कि उन्हें अभिनेता और पहलवान दोनों तौर पर जाना जाता है। उन्होंने 1959 में पूर्व विश्व चैम्पियन जॉर्ज गार्डीयांका को पराजित करके कॉमनवेल्थ की विश्व चैम्पियनशिप जीती थी। बाद में वे अमरीका के विश्व चैम्पियन लाऊ थेज को पराजित कर फ्रीस्टाइल कुश्ती के विश्व चैम्पियन बने। दारा सिंह 2003-2009 तक राज्यसभा के सदस्य भी रहे।

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राष्ट्रीय चैंपियन

भारत की आज़ादी के दौरान 1947 में दारा सिंह सिंगापुर पहुंचे। वहां रहते हुए उन्होंने ‘भारतीय स्टाइल’ की कुश्ती में मलेशियाई चैंपियन त्रिलोक सिंह को पराजित कर कुआलालंपुर में मलेशियाई कुश्ती चैम्पियनशिप जीती। उसके बाद उनका विजयी रथ अन्य देशों की ओर चल पड़ा और एक पेशेवर पहलवान के रूप में सभी देशों में अपनी कामयाबी का झंडा गाड़कर वे 1952 में भारत लौट आए। क़रीब पांच साल तक फ्री स्टाइल रेसलिंग में दुनिया भर (पूर्वी एशियाई देशों) के पहलवानों को चित्त करने के बाद दारा सिंह भारत आकर सन 1954 में भारतीय कुश्ती चैंपियन (राष्ट्रीय चैंपियन) बने। दारा सिंह ने उन सभी देशों का एक-एक करके दौरा किया जहां फ्रीस्टाइल कुश्तियां लड़ी जाती थीं।

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जब किंग कॉन्ग को धूल चटाई

नवंबर 1962 में रांची के अब्दुल बारी पार्क में हुई फाइट को आज तक कोई नहीं भूला पाया। इस फाइट में दारा सिंह ने दुनिया के जाने-माने पहलवान किंग कॉन्ग को हराया था। ऑस्ट्रेलिया के किंग कॉन्ग ने दारा सिंह को कुश्ती लड़ने की चुनौती दी थी। मुकाबले में 200 किलो के किंग कॉन्ग के सामने दारा सिंह बच्चे लग रहे थे, बावजूद इसके वे किंग कॉन्ग पर भारी पड़े। उन्होंने किंग कॉन्ग को तीन बार पटखनी दी। एक बार तो उन्होंने छह फीट लंबे किंग कॉन्ग को उठाकर ट्विस्ट करते हुए एरिना से बाहर फेंक दिया। इसके बाद साल 1962 में फिल्म ‘किंग कॉन्ग’ रिलीज हुई। इस फिल्म में दारा सिंह ने एक्टिंग भी की थी।

विश्व चैंपियन

अमेरिका के विश्व चैंपियन लाऊ थेज को 29 मई 1968 को पराजित कर फ्रीस्टाइल कुश्ती के विश्व चैंपियन बन गए। कुश्ती का शहंशाह बनने के इस सफर में दारा सिंह ने पाकिस्तान के माज़िद अकरा, शाने अली और तारिक अली, जापान के रिकोडोजैन, यूरोपियन चैंपियन बिल रॉबिनसन, इंग्लैंड के चैपियन पैट्रॉक समेत कई पहलवानों का गुरूर मिट्टी में मिला दिया। 1983 में कुश्ती से रिटायरमेंट लेने वाले दारा सिंह ने 500 से ज़्यादा पहलवानों को हराया और ख़ास बात ये कि ज़्यादातर पहलवानों को दारा सिंह ने उन्हीं के घर में जाकर चित किया। उनकी कुश्ती कला को सलाम करने के लिए 1966 में दारा सिंह को रुस्तम-ए-पंजाब और 1978 में रुस्तम-ए-हिंद के ख़िताब से नवाज़ा गया।

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WWE ने सम्मानित किया

इतिहास में दारा सिंह ने ऐसी मिसाल दी जो कभी भूली नहीं जा सकती। शक्ति और आत्मविश्वास का दूसरा नाम दारा सिंह है।  दारा सिंह ने हमेशा भारत का नाम ऊंचा किया है। और अब एक ऐसा मौका आ गया है जब उन्होंने फिर भारत का झंडा ऊंचा किया है। इस बार ये WWE में हुआ है। रैसलिंग में दारा सिंह ने ऐसा काम किया है जिसका सम्मान तो उन्हें मिलना ही था। WWE ने दारा सिंह को एक बेहद खास सम्मान से नवाजा है। WWE ने दारा सिंह को हॉल ऑफ फेम 2018 की लैगेसी विंग में शामिल किया है।

‘राज करेगा खालसा’ आपातकाल

1974-75 में दारा सिंह ने ‘राज करेगा खालसा’ प्रोजेक्ट लॉन्च किया था। इसमें राजेश खन्ना, नीतू सिंह, नवीन निसकोल और योगिता बाली थे। इससे पहले की प्रोजेक्ट पूरा होता 25 जून 1975 को इंदिरा गांधी ने देश में इमरजेंसी लगा दी। दारा सिंह इस फिल्म के लेखक और निर्माता थे। अपने पहले ही प्रोजेक्ट में दारा सिंह को बहुत परेशानियों का सामना करना पड़ा। सरकार ने फिल्म के रिलीज पर रोक लगा दी। 1976 में फिल्म को सेंसर बोर्ड ने हरी झंडी दे दी। फिल्म रिलीज हुई और पहले ही दिन सारे शो हाऊसफुल रहे। ‘राज करेगा खालसा’ अपने समय की सबसे महंगी पंजाबी फिल्म थी. जो एक हिंदू लड़के की कहानी थी। जिसमें वो अपने परिवार की मर्जी के खिलाफ सिख धर्म को अपनाता है।

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हनुमान के किरदार से फिल्मी सफर तक

दारा सिंह ने 1962 में एक्टिंग की दुनिया में कदम रखा। रामानंद सागर के शो रामायण में हनुमान का किरदार उनके सबसे यादगार किरदारों में से एक है। उनकी भारी-भरकम आवाज और सुडौल शरीर के चलते लोग उनके  किरदार के दीवाने हो गए। उन्होने कुल 146 फिल्मों में काम किया। फिल्‍म जब वी मेट में वो आखरी बार करीना कपूर के दादा जी के रूप में नजर आये थे। 1996 में उन्‍हें रेसलिंग आबजर्व न्‍यूजलेटर में हाल आफ फेम चुना गया। उन्होने अपनी आत्मकथा पंजाबी में लिखी जो प्रवीन प्रकाशन से छपी ये1993 में हिन्दी में भी आई। उनकी किताब का नाम है मेरी आत्मकथा।

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अंतिम समय

7 जुलाई 2012 को उन्हें अचानक दिल का दौरा पड़ा। मुंबई के एक अस्पताल में वो एडमिट थे। 11 जुलाई को डॉक्टर्स ने मना कर दिया। घरवाले घर ले आए, जहां 12 जुलाई की सुबह साढ़े सात बजे हमारा पहलवान हम सभी को छोड़ कर चला गया।